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हिंदी के विविध रूप तथा प्रयोजनमूलक हिंदी

 

राधानगरी महाविद्यालय, राधानगरी

                               -प्रा. .एम.कांबळे

 

बी..भाग 1, सेमिस्टर-2

आवश्यक हिंदी

·       पाठ्यांश

 

·        इकाई-1 हिंदी के विविध रूप तथा प्रयोजनमूलक हिंदी

·        हिंदी के विविध रूपों का परिचय:

हिंदी भाषा की उत्पत्ति भारोपीय भाषा परिवार की भारतीय आर्य भाषाओं से हुई है। आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में हिंदी सर्वाधिक व्यक्तियों द्वारा बोली और प्रयोग की जानेवाली भाषा है। हिंदी का प्रयोग सिर्फ भारत में ही नहीं विदेश में भी हो रहा है। साहित्यिक दृष्टि से हिंदी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है। आजकल प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। प्रयोजनमूलक हिंदी कोकामकाजी हिंदी अथवाव्यावहारिक हिंदी कहा जाता है। वैज्ञानिक अन्वेषणों तथा जनसंचार क्षेत्र में हुई क्रांति के कारण प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रयोग विविध क्षेत्रों में बढ़ते जा रहे हैं। इसी कारण हिंदी को मातृभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा आदि अनेक रूप बनते जा रहे हैं।

1.   मातृभाषा :

मातृभाषा का सामान्य अर्थ है-‘माता की भाषा। बालक अपनी माँ से जो भाषा सिखता है, वह उसकीमातृभाषा मानी जाती है। माँ का संबंध किसी वर्ग या समुदाय से होता है। अतः उस समुदाय में बोली जानेवाली भाषा उस समुदाय के सभी लोगों कीमातृभाषा कही जाती है। मातृभाषा सामाजिक दृष्टि से निर्धारित व्यक्ति की वह आत्मीय भाषा है, जो व्यक्ति की अस्मिता को किसी भाषाई समुदाय की सामाजिक परंपरा और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से संबद्ध करती है। इस भाषा के माध्यम से व्यक्ति का व्यक्तित्व विकसित होता है। व्यक्ति मातृभाषा के द्वारा ही परिवार और समाज में अपना एक अलग स्थान निर्माण करता है। महात्मा गांधीजी ने कहा है, “मनुष्य के सामाजिक विकास के लिए मातृभाषा उतनीही आवश्यक है, जितना कि बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध।

2.   राजभाषा:

हिंदी हमारे देश की राजभाषा है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा में इसे राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी गई है। राजभाषा का मतलब है-‘राजकाज चलाने की भाषा। जिस भाषा का उपयोग सरकारी कार्यालयों में सरकारी कामकाज के लिए प्रयुक्त की जाती है उसे राजभाषा कहते है। राजभाषा का प्रयोग प्रमुख रूप से शासन, विधान, न्यायपालिका तथा विधानपालिका आदि चार क्षेत्रों में किया जाता है। हमारे देश में बारहवीं शती तक संस्कृत ही राजभाषा के रूप में प्रचलित थी। उसके बाद तुर्कों के आगमन के बाद तुर्की और अफगानों के आगमन से फारसी राजभाषा बनी। मुगल शासनकाल में हिंदी का सहराजभाषा के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। औरंगजेब के शासन काल में हिंदी विविध शैलियाँ उपयोग होने लगा था। मराठा प्रशासन में हिंदी का प्रयोग व्यापक रूप में मिलता है। अंग्रेज देश में आने के बाद अंग्रेजी राजभाषा बन गई। अब देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद हिंदी का ही प्रयोग देश की राजभाषा के रूप में किया जाता है।

3.   सर्जनात्मक भाषा:

भाषा में होनेवाले नए प्रयोग या परिवर्तन को सर्जनात्मक भाषा कहा जाता है। बोलचाल की भाषा में जब नवीनता, कल्पना तथा मुहावरे आदि का प्रयोग किया जाता है तब सर्जनात्मक भाषा का रूप विकसित होता है। भाषा का सर्जनात्मक प्रयोग प्रमुख रूप् से गद्यात्मक और पद्यात्मक रूपों में किया जाता है। गद्यात्मक भाषा में कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, निबंध, जीवनी आदि विधाएँ आती हैं तो पद्यात्मक याने काव्यात्मक भाषा के अंतर्गत खंडकाव्य, महाकाव्य, गीत, प्रगीत आदि विविध काव्य प्रकार आते हैं।

4.   कार्यालयीन हिंदी:

जिस हिंदी का प्रयोग सरकारी, अर्धसरकारी, गैर कार्यालयों में किया जाता है उसेकार्यालयीन हिंदी कहा जाता है। वास्तव में कार्यालय की सबसे बड़ी इकाई प्रशासन है। जिसके अंतर्गत देश के आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षात्मक, शैक्षिक सामाजिक, साहित्यिक आदि विभिन्न दृष्टियों से कार्यालयीन व्यवहार करने पड़ते हैं। इस कार्यालयीन व्यवहार की एक विशिष्ट भाषा होती है। इसे कार्यालयीन भाषा कहा जाता है। कार्यालयों में प्रयोजनमूलक हिंदी के जिस रूप का प्रयोग किया जाता है उसेकार्यालयी हिंदी कहा जाता है। कार्यालयों में अनेक प्रकार के काम चलते हैं। इसी कार्य की विविधता के अनुसार कार्यालयी हिंदी के विविध रूपों का प्रयोग किया जाता है।

 

 

5.  वाणिज्यिक हिंदी:

वाणिज्यिक क्षेत्र में जिस प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग किया जाता है, उसे  वाणिज्यिक हिंदी कहते है। प्रयोजनमूलक हिंदी का वाणिज्यक और व्यावसायिक उपयोग का क्षेत्र व्यापक है। औद्योगिक क्रांति के बाद इसका व्याप्ति राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ गई है। वस्तु के उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक पहुँचाने तक की संपूर्ण गतिविधियाँ वाणिज्य के अंतर्गत आती है। वाणिज्यिक हिंदी की अनेक उपप्रयुक्तियाँ होती हैं। व्यवहार में उपयोग के अनेक इसके अनेक रूप दिखाई देते हैं।

6.   विज्ञापन की हिंदी:

आज के युग को विज्ञापन का युग माना जाता है। किसी वस्तु या सेवा की बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन का प्रयोग किया जाता है। उपभोक्ता या ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन की भाषा में आकर्षण क्षमता होनी चाहिए। आकर्षण क्षमता बढ़ाने के लिए इसमें अनेक प्रयोग किए जाते हैं। काव्य की भाषा की तरह विज्ञापन की भाषा में भी कुछ आवश्यक गुण होते हैं। आकर्षकता, स्मरणीयता, प्रभावात्मकता ये विज्ञापन के महत्त्वपूर्ण गुण हैं। अगर विज्ञापन ग्राहकों को आकर्षित करने में सफल हो गई तो ही वह बिक्री बढ़ाने में सहायक हो सकती है। इसलिए विज्ञापन की हिंदी में ये सारे गुण विद्यमान होने चाहिए। इसलिए तो विज्ञापन बनाते समय उसमें भाषा का प्रयोग बहुत सोच-समझकर किया जाता है।

7.   वैज्ञानिक तथा तकनीकी साहित्य की हिंदी:

वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र से संबंधित याने भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, जीवविज्ञान, इंजीनियरिंग, प्रेस, फैक्ट्री आदि विभिन्न क्षेत्रों में जिस प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग किया जाता है उसेवैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र की हिंदी कहा जाता है। इस भाषा की अनेक प्रवृत्तियाँ होती हैं। विभिन्न प्रवृत्तियों के अनुसार उनकी अलग-अलग शब्दावलियाँ होती हैं। कुछ मात्रा में इसकी शब्दावलियों संरचनात्मक भेद होते हैं। इसके बावजूद इसमें कुछ मात्रा में समानता भी दिखाई देती है।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में प्रयोजनमूलक हिंदी का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

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