(Eknath Patil)
रजिया (रेखाचित्र) - रामवृक्ष बेनीपुरी
F. Y. B. A. , HINDI , paper no - II , semester - II ,
लेखक परिचय :
रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के सिद्धहस्त रेखाचित्रकार के रुप में मशहूर है। उनका जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में जनवरी 1902 में हुआ। पिता का नाम कुलवंतसिंह था। एक साधारण किसान परिवार में बेनीपुरी जी का बचपन गुजरा। आपकी आरंभिक शिक्षा ननिहाल (बंशीपचरा) तथा बेनीपुरी में हुई। आप साहित्य विशारद तक पढे। काव्य लेखन से बेनीपुरी जी की साहित्यिक यात्रा का श्रीगणेशा हुआ।
साहित्य सृजन के साथ आपने पत्रकारिता तथा राष्ट्रभाषा का कार्य किया। साहित्य सर्जन के क्षेत्र में रेखाचित्र के अलावा - बेनीपुरी जी ने नाटक, जीवनी, कहानी, उपन्यास, निबंध तथा बालसाहित्य में अपना योगदान किया। आपने लगभग सौ ग्रंथों की रचना की। इनमें से उल्लेखनीय है - माटी की मूरते, पतितों के देश में, लाल तारा, गेहूँ और गुलाब, आदि। अंबपाली, संघ मित्रा, अमर ज्योति बेनीपुरी जी की सफल नाट्य रचनाएँ रही है। आपके द्वारा संपादित 'विद्यापति की पदावली' बहुचर्चित रही।
बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपका व्यक्तित्व क्रांतिकारी था। आपकी भाषा प्रौढ एवं परिमार्जित रही। आप संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू के जानकार थे। आप स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। सन् 1930 से 1942 के काल में आपका अधिकतम समय कारावास में जेल जीवन के संस्मरण (जंजीरे और दीवारे) त्याग और बलिदान की कहानियाँ है। सन 1968 में आप स्वर्ग सिधारे। गुजरा। आपके
प्रकाशित रचनाएँ
'लाल तारा' (1946), माटी की मूरते' (1950)
'गेहूँ और गुलाब' (1957), 'मील के पत्थर' प्रकाश में आए है।
प्रस्तुत रेखाचित्र में गाँव की एक मुसलिम चूडीहारिनी, जो इस गाँव में एकमात्र है, उसका चित्र खींचा गया है। इस चूडीहारिनी का नाम हैं- 'रजिया' जब वह छोटी थी, अपनी माँ के साथ लेखक के घर अक्सर आया करती थी। इसी प्रकार वह पूरे गाँव में अपनी माँ के साथ घूमा करती थी। उसके कानों में हमेशा चाँदी की बालियाँ, गले में चाँदी का हेकल, हाथों में चाँदी के कंगन और पैरो में चाँदी की गुडाई रहती थी। उसका यह साज- -श्रृंगार बाल्यावस्था में लेखक को हमेशा आकर्षित करता रहताथा। कभी-कभी तो लेखक रजिया का पीछा तक करता था। तब रजिया की बूढी माँ, मजाक में कह भी देती थी "बबुआजी, रजिया से ब्याह कीजिएगा?" और संकोच के कारण लेखक वहाँ से खिसक जाता था।'रजिया' का आशय :
रामवृक्ष बेनीपुरी का उत्कृष्ट और कालजयी व्यक्तिपरक रेखाचित्र रजिया है। रजिया एक सच्ची ग्रामीण दृष्टि प्रदान करनेवाली मुस्लिम चूडीहारिनी पात्र है। लेखक का रजिया का वर्णन बाल्यावस्था और साज-श्रृंगार वर्णनआकर्षित लगता है। लेखक की भावना परम वैयक्तिक तथा निजी अनुभूतियों से युक्त है। लेखक द्वारा नायिका, वातावरण, घटनाएँ तथा संबंध के परिवेश एक दूसरे से इस प्रकार घुलमिल जाते है जिसकी एकसूत्रता अवश्य बनी रहती है। लेखक ने कहा कि गाँव में एक मात्र पात्र अलग है जिसका चित्र खींचा गया है।
लेखक ने 'रजिया' का वर्णन शुरूआत में ही ऐसा सुंदर रेखांकित किया है जो पाठकों के सामने पात्र को खड़ा करते हैं। वे कहते है कि, “रजिया ने कानों में चाँदी की बालियाँ पहनी हैं। गले में पहनने का सुंदर चाँदी का गहना है। हाथों में चाँदी के कंगन डाले है और पैरों में चाँदी के गोंडाई (पायल) पहने हैं। रजिया ने भर बाँह की बूटेदार कमीज पहनी है। काली साडी के छोर को गले में लिपटा है। गोरे चेहरे पर लटकते हुए बाल संभालने में परेशान छोटी-सी लड़की लेखक के सामने खड़ी होती है। लेखक अपने बचपन की बात कहते है कि स्कूल से आते है जैसे मानो कसाईखाने से रस्सी तोडकर आए हुए बछडे है। स्कूल से आकर मौसी के दिए हुए छठपूजा में बनाए ठेकुए लेखक झूले बैठकर खा रहा था। इतने में आवाज आती है, “खाना मत छूना" तब उसका ध्यान छोटी रजिया पर जाता है। हिंदु बस्ती में उन्होंने कभी मुस्लिम लड़की को देखा नहीं था। क्योंकि बचपन में एक मेले में लेखक खो गया था तब उन्हे अघोरी विधा के अनुयायी उठाकर ले जा रहे थे तभी गांव की एक लड़की नजर पड़ी और उसी कारण वह बच पाये। माँ-बाप का बचपन में ही साया उठने से उनका पालन मौसी ने किया था। मौसी उसे कभी अपने आँखो से ओझल नहीं होने देती थी। गाँव में बहुत सी लड़कियाँ थी लेकिन रजिया जैसी वेशभूषा, चाँदी के गहने, रंग-रूप, आँखों का नीलापन और समूचे चेहरे का ढंग देखकर उसे एक टक लेखक घूरने लगा। जहाँ से आवाज आयी थी, वह रजिया की माँ थी। रजिया की माँ ने लेखक के आँगन में चूडियों का बाजार पसारकर रखा था। वहाँ बहुतसी बहू बेटियाँ उनको घेर कर चूडियों का मोल भाव कर रही थी। उस बच्ची को पहली बार देखकर उत्सुकता जाग गयी। मौसी ने उसे भी ठेकुए और कसार दिया। वह लड़की नहीं ले रही थी। माँ के कहने से लेने के बाद लेखक ने उसे सवाल पूछे उसके जवाब सिर्फ गर्दन हिलाकर ही दिया।
रजिया और उनकी माँ खरीदारिनों की तलाश में दूसरे आँगन में चली गयी। लेखक उनके पीछे चला गया तब रजिया की माँ ने कहा, "बबुआजी, रजिया से ब्याह कीजिएगा?" फिर बेटी की ओर मुखातिब हो मुस्कराहट से कहा, "क्योंरी रजिया, यह दूल्हा तुम्हें पसन्द है?" उनके कहने से वहाँ से लेखक भागता है। ब्याह और वह भी मुसलमान लड़की से? उनके जाने के बाद उन्होंने मुडकर देखा। रजिया चूडिहारिन इसी गाँव में रहनेवाली थी। बचपन, जवानी और शादी भी इसी गाँव के मुसलमान लड़के से हो गयी और कभी-कभी लेखक से उनकी मुलाकात होती रहती थी। लेखक पढ़ते-पढते शहर में पढ़ने गया। छुट्टी में जब भी आता तब रजिया माँ के पीछे घूमती रहती, वो पढ़ नहीं सकी। वह चूड़ियाँ पहनने की कला जान गयी। रजिया बढ़ती हुई उसके शरीर और स्वभाव में भी बदलाव आया। पहले शहर से आने के बाद दौडकर निकट आके तरह-तरह सवाल पूँछती अब कुछ दिनों बाद सकुँचा रहती। अब वह स्वतंत्र रूप में चूडियों का व्यापार करती। रजिया के सौंदर्य के आकर्षण से बहुओं के पतिदेव दूर से ताकते रहते थे। बहुओं के सामने वह उनका मजाक उड़ाती थी तब वहाँ से पतिदेव भागते थे। इसीतरह रजिया अपने पेशे में निपुण हो रही थी। यह निपुणता रजिया की माँ के पास थी।
लेखक का शहर में रहना बढ़ता गया तबसे रजिया से भेट दुर्लभ होती गयी। एक दिन गाँव में रजिया के साथचुडियों से भरा टोकरा सिर पर लिए नौजवान देखा तो लेखक ने समझ लिया की उसका पति है। लेखक ने मज़ाक से कहा कि, "इस मजूरे को कहाँ से उठा लाई है रे?" तब उन्होंने कहा कि वे उनके पति है। रजिया की माँने बचपन में मजाक से दूल्हे की बात याद आयी। वह भी दिन आ गया कि जब वही लेखक पति बने उसकी पत्नी को चूडियाँ पहनाने रजिया आ गयी उन्होंने खूब धूम मचायी थी।
समय बीतता गया। रजिया और लेखक की भेट पटना शहर में हुयी। रामवृक्ष बेनीपुरीजी एक छोटेसे अखबार के संपादक के रूप में काम करते थे। एक चौक में तभी एक बच्चा आकर कहने लगा बाबू आपको औरत बुला रही है, यह बात सुनकर लेखक को पद प्रतिष्ठा का खयाल आया। यहाँ प्रसिद्ध पान की दूकान में वे पान खा रहे थे। चौक में से लोग इधर-उधर चले जाने के बाद बच्चे ने जहाँ इशारा किया वही पहुँच गये। तभी वहाँ एक स्त्री यानी रजिया ने आकर 'सलाम मालिक' कहा। बातचीत के दौरान समझ गया कि जमाना बदल गया है। चूडियाँ दूल्हनों के साजश्रृंगार की नयी चीजें लेकर आयी थी। रजिया लेखक को रहने का ठिकाना पूँछने लगी तब लेखक अचरज में पड़ गया तभी अधेड उम्र का उसका पति हसन आ गया तो लंबी दाढी, पाच हाथ लम्बा बन गया था। हसन पान लाने के बाद रजिया किस तरह दुनिया बदल गयी है यह बताते हुए कहती है, “अब तो ऐसे गाँव है जहाँ हिंदू मुसलमानों के हाथ से सौदे नहीं खरीदते । अब हिंदू चुडिहारिने हैं, हिंदू दरजी है। " रजिया ने यह भी खुशी की बात बताई, मेरे गाँव में यह पागलपन नहीं है। रजिया के अलावा लेखक की पत्नी किसीसे चूडियाँ लेती नहीं थी। दूसरे दिन रजिया अपने पति को लेकर डेरेपर हाजिर हो गयी। लेखक की पत्नी को देने के लिए चूड़ियाँ देती गयी। लेखक ने रजिया को ही चूड़ियाँ देने की बात कही तब उन्होंने अपने हाथ से पहनाने की बात कही जिसने पति प्रेम की बात बतायी।
काफी समय बाद एक दिन अचानक लेखक रजिया के गाँव में पहुँच गये थे। चुनावी चक्कर का कठिन कार्य था। उस गाव में पहुँचते ही उन्हें रजिया चूडीहारिन की याद आयी। नेता बने लेखक की जय-जयकार हो रही थी। उनको अपने घर में लेने के लिए लोग भाग्य समझते थे। वही नेता स्वर्ण युग संदेश लोगों को सुना रहे थे लेकिन दिमाग में अलग गुत्थियाँ उलझी थी। इतने में ही भीड से छोटी बच्ची रजिया आ गयी, जिस तरह रजिया दिखती है। बीच में चालीस-पैतालीस साल का अंतर ही खत्म हुआ था। तब किसीने कहाँ कि वह ठीक अपनी दादी जैसी है। उन्होंने लेखक का हाथ पकडकर कहाँ, "चलिए मालिक, मेरे घर । "
लेखक रजिया के आंगन में खडा था। छोटा सा घर लेकिन साफ-सुथरा रजिया का पति हसन मर गया था। उनके तीन लड़के थे। बड़ा कलकत्ता में कमाता है, मंझला उनका ही पिढीजात पेशा संभालता है छोटा लडका शहर में पढ़ता है। रजिया जैसी दिखनेवाली बडे लडके की बेटी हैं। उस लडकीने रजिया को आँगन से ही पुकारा, “मालिक दादा आ गये।” रजिया ने पोती को भेज दिया किंतु उन्हें विश्वास नहीं था कि ये बड़े नेता जो मोटार गाडी से चलनेवाले हैं, उनके घर में आऐंगे। उन्होंने बहुओं से कहलाकर बीमारी में पडे मैलेकुचले कपडे बदल दियें। नजदीक आकर लेखक से 'मालिक सलाम' कहा। लेखक को लगता है उसके चेहरे से झुरियाँ चली गई, उसका चेहरा बिजली की तरह चमक उठा है।इस तरह 'रजिया' रेखाचित्र स्मृतिकणों के बेजोड संयोजन का परिणाम है। रेखाचित्र के समाप्त हो जाने के उपरान्त भी हम सब कुछ भूलकर कुछ देर तक उसी रस में तन्मय रहते है। इस व्यक्तिपरख रेखाचित्र में लेखक की अपनी तीव्र अनुभूति तो है साथ ही रजिया की परिवर्तित स्थिति पाठक को एक ऐसे संभ्रम में डाल देती है जिससे उबरने की अपेक्षा वह अधिक अधिक धँसता चला जाता है और लेखक की अनुभूति के साथ तादाम्य कर लेता है।
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