Print Friendly and PDF e-contents Radhanagari College: भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता

Monday, 21 June 2021

भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता


T. Y. B. A., HINDI  , Paper no -16 , semester - 06                          

भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता 


भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता पर विचार करने के पूर्व विज्ञान तथा कला की विशेषताओं पर एक नज़र डालकर उसके आधार पर हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि भाषाविज्ञान विज्ञान है या कला ? और अगर वह विज्ञान है तो क्यों और किस सीमा तक विज्ञान है? निम्न मुद्दों में इसे आसानी से स्पष्ट किया जा सकता है।


1) विज्ञान की विशेषताएँ


"किसी भी वस्तु का विशिष्ट अथवा युक्तिसहित ज्ञान प्राप्त करना ही विज्ञान है।" विज्ञान अपने आप में कोई विषय नहीं, बल्कि एक दृष्टि है, ज्ञान की विशिष्ट पद्धति है। 'विज्ञान' शब्द अंग्रेजी के साईस (Science) का पर्याय है। उसका मूल अर्थ True Knowledge होता है। याने विज्ञान का ज्ञान सत्य, ध्रुव निश्चय तथा अटल सत्य होता है । समुचित रूप में विज्ञान का अर्थ किसी वस्तु का सम्यक परीक्षण करना, कारणों का पता लगाना, तुलना करना तथा प्रयोग के द्वारा सिद्धान्त निश्चित करना है।


उसी ज्ञान को विज्ञान कहते हैं, जिसमें विकल्प की गुंजाईश नहीं होती, मन की स्थिति विकल्प रहीत हो जाती है। जैसे अमुक कारण हो तो अमुक कार्य होगा ही। ।


विज्ञान के नियम और सत्य सर्व देशव्यापी और सर्व कालव्यापी (सार्वदेशिक और सार्वकालिक) होते हैं । उदा. पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का नियम भारत तथा यूरोप में समान रूप से लागू होता है। तथा पृथ्वी सूर्य क चारों ओर चक्कर लगाती है तथ्य सब कालों में एक ही रहेगा। मतलब विज्ञान के मूलतत्त्व सर्वत्र समान लागू होते हैं।विज्ञान की दृष्टि विश्लेषणात्मक होती है। विज्ञान का उद्देश्य ज्ञानार्जन होता है। विज्ञान केवल सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है। सत्य का अन्वेषण करता है। और भौतिक सत्य को प्रस्थापित करता है। विज्ञान में निश्चयात्मकता होती है। वैज्ञानिक अध्ययन में समान सामग्री से समान निर्णय निकलना संभव है।


वैज्ञानिक अध्ययन का उद्देश्य केवल उत्कंठा की तृप्ति होता है। इस दृष्टि से विज्ञान के लिए विषय साध्य होता है। वह ईश्वर या प्रकृति की कृतियों का विश्लेषण करता है, मानवीय कृतियों का नहीं । विज्ञान सामग्री प्रधान विषय है। इसमें व्यक्तिगत रूचियों का कोई स्थान नहीं। विज्ञान शुष्क होता है। विज्ञान के निर्मित नियम तात्त्विक दृष्टि से अपवाद रहित होते हैं। कारण ये नियम तथा निष्कर्ष वृद्धि के द्वारा किए गए सूक्ष्म प्रयोगों से निश्चित किए जाते हैं।


2.कला की विशेषताएँ -


कला विज्ञान से भिन्न है। कला के मानदण्ड देश-काल के अनुसार परिवर्तित होते हैं। कला में व्यक्ति की अभिरूचि का याने वैयक्तिकता का बड़ा हाथ रहता है। मतलब कला व्यक्तिनिष्ठ एवं तद्नुसार विशिष्ट है। कला में यह निर्धारित नहीं किया जा सकता कि अमुक तत्वों के संयोग से अमुक प्रकार की कला का उद्भव होता है। कला सौंदर्यानुभूति पर प्रतिष्ठित होती है। विज्ञान और कला के सत्य में अंतर होता है। कला का उद्देश्य मनोरंजन होता है। वह उपयोगी भी होती है।


कला में भाव को महत्व मिलता है और वह व्यक्ति की अभिव्यक्ति बन जाता है। वह मानव स्वभाव के अनेक पहलुओं को देखकर मानव के भावना जगत् के सत्य का उद्घाटन करती है। कला रचनात्मक होती है। कला में सामान्य नियमों का निर्धारण नहीं होता। जो नियम बनाए जाते हैं, उसमें अनेक अपवाद होते हैं। कला का संबंध हृदय से है। अतः वृद्धि की अपेक्षा भावना के अधिक निकट है। कला में कल्पना को महत्वपूर्ण स्थान होता है। सौंदर्य और आनंद उसका लक्ष्य होता है। कला रूचि प्रधान होती है, इसलिए एक ही विषय से सम्बन्धित सामग्री द्वारा विभिन्न रूचि वाले कलाकारों द्वारा विभिन्न रचनाएँ सम्भव हैं। उदा. अनेक कलाकार एक ही पौधे को अपनी-अपनी रूचि के अनुरूप विभिन्न प्रकार से चित्रित कर सकते हैं। कला के लिए कोई भी विषय साधन होता है, साध्य नहीं। कला सर्वथा मानवीय कृति है।


उपर्युक्त विवेचन से विज्ञान और कला का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। और यह भी स्पष्ट हो जाता है कि भाषाविज्ञान कला नहीं, बल्कि विज्ञान है। किन्तु देखना यह है कि भाषाविज्ञान अन्य विज्ञानों की तरह शुद्ध विज्ञान है या कुछ भिन्न हैं।


3) भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता


विज्ञान का प्रमुख लक्षण है, पदार्थों में कार्यकारण सम्बन्ध की स्थापना करना। याने किसी कारण विशेष के उपस्थित रहने पर ही कार्य होता है। विज्ञान इस बात की खोज करता है कि अगर कोई घटना घटती है तो उसका कारण क्या है? कार्यकारण भाव के विश्लेषण से बिखरी हुई वस्तुओं और असम्बद्ध घटनाओं में एकसंगति या तारतम्य स्थापित होता है। भाषाविज्ञान में बिखरी हुई सामग्री को एकत्र करके उसका विश्लेषण करने इसी प्रकार की व्यवस्था और सम्बद्धता स्थापने का प्रयत्न होता है। जैसे कोई ध्वनि किसी विशिष्ट दिशा में ही क्यों परिवर्तित होती है, इसके कारण की खोज करते हैं और कार्यकारण सम्बन्ध से ध्वनि परिवर्तन की व्यवस्था स्पष्ट करते हैं। अत: विज्ञान का मूलाधार कार्य कारण भाव भाषाविज्ञान में भी होता है।


विज्ञान का दूसरा प्रमुख लक्षण है प्रयोग चिंतन और विचार के पश्चात् प्रयोग द्वारा वैज्ञानिक विश्लेषण को प्रामाणिक बनाया जाता है। भाषा के लिए भी प्रयोग किए जाते हैं। ध्वनिशास्त्र की प्रयोगशाला में ध्वनिसंबंधी प्रयोग किए जाते हैं। किसी भाषा की ध्वनियों के लक्षणों का पता प्रयोग से ही लग जाता है। भाषा की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए शिशुओं पर अनेक प्रयोग हुए हैं। मिस्त्र के राजा सैमेटिकस, अकबर बादशाह, फ्रेडरिक द्वितीय और स्कॉटलैंड के जेम्स चतुर्थ ने इस प्रकार के प्रयोग किए थे।


तीसरा लक्षण है विज्ञान में विकल्प नहीं होते। विज्ञान का परिणाम सार्वकालिक और सार्वत्रिक होता


है। विज्ञान के प्रयोग हम कहीं भी करें, हमें एक से ही परिणाम प्राप्त होते हैं। कुछ लोगों के अनुसार भाषाविज्ञान


में यह लक्षण लागू नहीं होता। वे कहते हैं ध्वनिपरिवर्तन के नियम सभी भाषाओं में एक से नहीं होते। किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि विभिन्न भाषाएँ अलग-अलग होती है, और उन सब पर एक ही नियम कैसे लागू हो सकता है? ध्वनिपरिवर्तन के कारण सभी भाषाओं में एक से हो सकते हैं; परन्तु ध्वनिपरिवर्तन के परिणाम भी सभी में एक से हों, यह कैसे हो सकता है?


ध्वनियों का उच्चारण, ध्वनियों का एक सुनिश्चित दिशा में विकास, पदरचना में सरलता का आग्रह, अर्थपरिवर्तन के सुनिश्चित कारण आदि अनेक बातें भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता प्रमाणित करती है। संस्कृत व्याकरण की शुद्धता और अपवादहीनता भी भाषाविज्ञान की वैज्ञानिकता की पुष्टि करती है।


विज्ञान की भाँति भाषाविज्ञान भी सिद्धान्त अथवा नियम निर्धारण से सम्बन्ध रखता है। विज्ञान में किसी वस्तु का सम्यक परीक्षण करके उसके सम्बन्ध में नियम निर्धारित किए जाते हैं, उसी प्रकार भाषाविज्ञान में भी भाषा की उत्पत्ति, रचना, विकास इत्यादि सभी तत्वों के विश्लेषण से सामान्य नियम निश्चित कर लिए जाते


भाषाविज्ञान के नियम तत्त्वत: सभी स्थितियों में पूरे उतरते हैं, यद्यपि उनमें अपवाद भी परिलक्षित होते हैं। पर अध्ययन की वैज्ञानिक प्रक्रिया होने के कारण इसे विज्ञान कहना ही अधिक सार्थक होगा, कला नहीं।


भाषा का विकास जनसमाज द्वारा स्वाभाविक रूप से ही होता है, व्यक्ति की इच्छा से उसमें कोई परिवर्तन सम्भव नहीं है। अतः भाषा प्राकृतिक वस्तु है, मानवकृत नहीं। कला सर्वथा मानवीय कृति है। अतः प्राकृतिक भाषा का अध्ययन करने वाला भाषाविज्ञान विज्ञान ही है।


इतना होने पर भी भाषाविज्ञान को प्राकृतिक विज्ञाना (Natural Sciences) के समकक्ष नहीं रखा जा सकता। भाषाविज्ञान अन्य विज्ञानों की अपेक्षा नया विज्ञान है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि


उसकी उपलब्धि अन्य विज्ञानों की अपेक्षा कम व्यवस्थित और कम नियमित हो ।भाषाविज्ञान पूर्ण रूप से विज्ञान ही है। नया और अविकसित होने के कारण यह उस तरह का विज्ञान नहीं होता, जिस तरह के गणित, रसायन, भौतिकशास्त्र आदि। वैसे ज्ञान की अनेक शाखाएँ ऐसी हैं, जिनमें विज्ञान के पूरे लक्षण घटित न होने पर भी उन्हें विज्ञान कहा जाता है। उदा. राजनीतिविज्ञान, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि । भाषाविज्ञान में कहीं कहीं अपवाद मिलते हैं, अर्थात् भाषा विज्ञान रसायन, भौतिक, गणित की तरह पूर्णरूपेण विशुद्ध अथवा निश्चित विज्ञान (Exact Science) नहीं है। इसलिए वह राजनीतिविज्ञान, समाजविज्ञान की तरह का विज्ञान है।


आजकल अध्ययन के विषयों को तीन वर्गों में रखते हैं -


1) प्राकृतिक विज्ञान (Natural scienceh) उदा. भौतिकी, रसायनशास्त्र आदि।


2) सामाजिक विज्ञान (Social science) उदा. समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि ।


3) मानविकी (Humanities) उदा. साहित्य, संगीतशास्त्र, चित्रकला आदि। भाषाविज्ञान इनमें सामाजिक विज्ञान के निकट आता है। वैसे तो उसकी 'ध्वनि विज्ञान शाखा, विशेषतः ध्वनि के उच्चरित होने के बाद कान तक के संचरण का अध्ययन, प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में आती है, तो उसकी शैली विज्ञान शाखा एक सीमा तक मानविकी में।


कला की दृष्टि से देखें तो भाषाविज्ञान में उपयोगिता, मनोरंजकता और व्यवहार ज्ञान है। किन्तु यह सब गौण रूप में आते हैं। भाषाविज्ञान भाषा से सम्बन्धित सभी समस्याओं का समाधान करता है। भाषाविज्ञान में कार्यकारण भाव, प्रयोग, निरीक्षण, परीक्षण आदि वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है और उनके आधार पर नियमों का निर्धारण होता है। कला के विकल्प, व्यक्तिनिष्ठता, देश-काल से सीमित होना ये बातें भाषाविज्ञान पर लागू नहीं होती हैं, अतएव उसको 'विज्ञान' कहना ही समुचित है।

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