Eknath Patil
S. Y. B. A. , HINDI , paper no - 06 , semester - 04 ,
कितने प्रश्न करुॅ - ममता कालिया राम का चरित्र चित्रण :
प्रस्तुत खंडकाव्य में सीता का चरित्र ही मुख्य है। बाकी सारे चरित्र सीता की व्यथा और उनके विद्रोही रूप को ठोस और गहरा बनाने के लिए खंडकाव्य में चित्रित है। 1) दूसरा प्रमुख पात्र :
प्रस्तुत खंडकाव्य में राम सिर्फ एक बार अपनी पूर्व धारणा और अपनी उसी पुरानी अटल निश्चयात्मकता के साथ उपस्थित होते हैं। इसके पहले राम का सारा चरित्र सीता की मनःस्थिती के माध्यम से हमारे सामने आता है। परंतु खंडकाव्य के प्रत्येक प्रसंग का संबंध प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राम के साथ जुड़ा हुआ है।
(2) शूरवीर :
प्रस्तुत खंडकाव्य में राम शूरवीर महापराक्रमी राजा के रूप में चित्रित है। जनक राजा द्वारा आयोजित सीता के स्वयंवर में अनेक वीर भूपति सम्मिलित होते हैं। कोई भी महाकाय शिवधनुष्य को उठा नहीं पाते तभी अयोध्या के राजकुमार राम का आगमन होता है। राम भरी सभा में महाकाय शिवधनुष्य उठाकर धराशायी करा देता है -
जब भरी सभा में उठकर अकस्मात ही तुमने
दो टूक धराशायी कर दिया धनुष्य शिव
बनवास के समय अनेक असुरों का संहार करते हुए राम लंका पहुँचते है। राम और रावण के बीच घमासान
युद्ध होता है। राम अपने शक्ति के बल पर रावण का संहार कर देते हैं। लंका पर विजय प्राप्त करके सीता को वापस अयोध्या ले आते हैं। प्रस्तुत खंडकाव्य में राम का चरित्र वाल्मिकी कृत 'रामायण' तथा तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस' की
3) मर्यादा पुरुषोत्तम राम :
तहमा पुरुषोत्तम के रूप में चित्रित है। खंडकाव्य में विवाह, अपहरण, अग्निपरीक्षा, निर्वासन और पृथ्वीप्रवेश इनमें से किसी प्रसंग में अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दिखाई नहीं देते। 4) लोकनिर्णय का सम्मान करनेवाला राजा :
राजा राम अपने परिजनों से भी प्रजा के बारे में अधिक चिंतित दिखाई देते हैं। राजाराम लोकहितैषी उदात्त राजा के रूप में चित्रित है। लोकनिर्णय का सदा सम्मान करना उनकी विशेषता है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम है। प्रजा दद्वारा शंका उपस्थित होने पर अपनी जीवनसंगीनी प्रिय पत्नी सीता का भी निर्वासन करते हैं। अगर राम चाह तो संशय व्यक्त करनेवालों को कड़ी से कड़ी सजा दे सकते थे। परंतु राम ऐसा नहीं करते क्योंकि उन्हें प्र -पत्नी से भी प्रजा महत्त्वपूर्ण है। 5 . अनिष्ठ निवारक :
वाल्मिकी 'रामायण' या तुलसी कृत 'रामचरितमानस' हो इनमें राम अनिष्ट निवारक के रूप में चित्रित हैं। विवेच्य खंडकाव्य में भी राम अनिष्ट निवारक महान राजा के रूप में चित्रित है। बनवास के समय अनेक अ का वध करके ऋषि मुनियों के संकटों को दूर करते हैं। महापराक्रमी असुरों के राजा लंकापति रावण का वध करके उनके भाई विभिषण को लंका का राजा बनाते हैं।
(6) एक आदर्श राजा :
विवेच्य खंडकाव्य में सीता का चरित्र प्रमुख है। राम का चरित्र सीता की व्यथा और उनके विद्रोह को ठोस बनाने के लिए चित्रित है। परंतु राम का चरित्र अपने आप में विशेष महत्व रखता है। वे एक आदर्श लोकहितैषी राजा के रूप में चित्रित है। प्रजा भी उनका सम्मान करती है। अयोध्या के राजा दशरथ राम को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। परंतु कैकेयी को दिए वचन निभाते हैं। राम को चौदह साल का बनवास सुनाते हैं। राम पिता के आदेश का पालन करते हुए चौदह साल बनवास के लिए निकल पड़ते हैं। विवेच्य खंडकाव्य में राम मर्यादा पुरुषोत्तम राजा के रूप में चित्रित है। प्रस्तुत खंडकाव्य में राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श राजा, आदर्श मित्र, आदर्श भाई आदि गुणों के रूप में चित्रित हुए हैं।
अतः प्रस्तुत खंडकाव्य में राम दूसरा प्रमुख पात्र है। राम शूरवीर धीरोदात्त, महापराक्रमी, मर्यादा पुरुषोत्तम लोकनिर्णय का सम्मान करनेवाला, अनिष्ठ निवारक एक आदर्श राजा के रूप में चित्रित है। 3. वाल्मिकी का चरित्र चित्रण :
वाल्मिकी प्रस्तुत खंडकाव्य का महत्त्वपूर्ण चरित्र है। निर्वासन के समय लक्ष्मण सीता को तमसा के किनारे छोड़कर वापस लौटते हैं। रोती कलपती सीता जल-समाधि लेने के बारे में सोचती है। लेकिन उनके भीतर बैठी हुई माँ उन्हें इस आत्मघात से बचाती है। इसमें ऋषि कवि वाल्मिकी भी सहायक होते हैं। बेबस, बेकसुर सीता को वाल्मिकी सहारा देते हैं। उसके 'संरक्षक' बनकर खड़े होते हैं। वे सिर्फ सीता को शरण ही नहीं देते बल्कि सीता के बच्चों का परिपालक भी बनते हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं। युद्ध विद्या में उन्हें निपुण बनाते हैं। इसके अलावा वे रामकथा के रचियता है। सीता वाल्मिकी ऋषि के आश्रम एक साधारण स्त्री की तरह रहने लगती है। अपने जुड़वाँ पुत्रों की सेवा शुश्रूषा में अपनी जिंदगी गुजार देना अब अपनी नियति समझने लगती है। वे लव-कुश को युद्ध विद्या के साथ-साथ रामायण के गायन में पारंगत करते हैं। तभी राम के अश्वमेध यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए ऋषि वाल्मिकी को निमंत्रण आता है और वे दोनों बालकों को लेकर यज्ञभूमि में पहुँचते हैं। शत्रुघ्न और साक्षात् वाल्मिकी के मुख से राम को पता चलता है कि सीता जीवित है और वह वाल्मिकी के आश्रम में रह रही है। राम गुरूजनों और ऋषियों से चर्चा करके सीता को पुनः वापस लेने का अपना निर्णय वाल्मिकी को सुनाते हैं और उन्हें इसके लिए राजी कर देते हैं। इससे भी आगे वे राम और सीता के पुनर्मिलन में मध्यस्थ की भूमिका भी अदा करते हैं। इस रूप में बाल्मिकी की मध्यस्थ बड़ी महत्त्वपूर्ण है।वे राम के निर्णय को उचित भी ठहराते हैं। सीता के सारे तर्कों के बावजूद उन्हें राम के निर्णयों में पूरी आस्था है। वे राम द्वारा दिए गए निर्वासन को भी राजा और प्रजा के संबंधों के लिए उचित ठहराते हैं। लेकिन राम के निर्णयों को उचित ठहराते हुए भी वे सीता के ऊपर अपने विचार नहीं लादते बल्कि उन्हें निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ देते हैं। यही नहीं शपथ ग्रहण के सार्वजनिक समारोह में वे सीता की निष्कलंकता के पक्ष में अपना सीधा-सादा किंतु प्रबल तर्क देते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत खंडकाव्य में समन्वयकारी चरित्र के रूप में कवयित्री ने हमारे सामने वाल्मिकी को प्रस्तुत किया है।
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