Print Friendly and PDF e-contents Radhanagari College: फुटपाथ के कलाकार (व्यंग्य) - शरद जोशी

Sunday, 30 May 2021

फुटपाथ के कलाकार (व्यंग्य) - शरद जोशी

 फुटपाथ के कलाकार (व्यंग्य) - शरद  जोशी.


प्रबुदध, स्वतंत्र और  बेबाक पत्रकार एवं व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को  मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ । पत्रकारिता, आकाशवाणी और सरकारी नौकरी के बाद उन्होंने लेखन को ही अपना जीवन बना लिया । समसामयिक घटनाओं में व्याप्त विसंगतियों को सार्थकता के साथ प्रस्तुत करने का श्रेय शरद जोशी जी को दिया जाता है। हिंदी व्यंग्य को नई दिशा और अर्थता प्रदान करनेवाले शरद जोशी सन् साठ के बाद के व्यग्यकार रहे हैं।


प्रकाशित रचनाएँ:- जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, पिछले दिनों, परिक्रमा आदि

संपादन कार्य :- 'दैनिक मध्य देश' - भोपाल, 'नवलेखन' मासिक भोपाल,

"हिंदी एक्सप्रेस - मुंबई आदि ।


 फिल्म लेखन :-' क्षितिज ,छोटी सी बात, दिल है कि मानता नहीं आदि । 


दूरदर्शन धारावाहिक :- ' देवी जी, ये जो है जिंदगी, विक्रम और वेताल,

वाह जनाब, ये दुनियाँ गजब की' आदि।


 पुरस्कार:- सन् 1989 ई. में भारत सरकार की ओर से 'पद्मश्री' से नवाजा गया ! 

 मृत्यू -05 सितम्बर 1991


 प्रस्तुत रचना  मे  शरद  जोशी जी ने जेबकतरे की जेब काटने की कला को दाद  दी है । एक बार जब खुद लेखक की ही जेब की संपत्ति को यह कलाकार हजम करता है तो उसके उँगलियों की लेखक सराहना करता है। जेब कटने के उन पीडा के क्षणों में भी लेखक के मन पर वह अनदेखा, अस्पर्शित कलाकार स्मृति की गहरी छाप छोड़कर चला जाता है जिसे लेखक कभी भूल नहीं सकता है ।

बस स्टॉप  पर खड़े लेखक की भीड भरे माहौल में कब जेब काटी जाती है इसका पत्ता तो उन्हें घर वापस लौटने पर ही चलता है। जेब में कम रुपये होने के बावजूद भी उसके खो जाने का गम उनके मन को सताता रहता है। जेबकतरे की जेब काटने की वह कला लेखक के मन को  दुःख के उन क्षणों में भी भा जाती है। वह जेबकतरे के इस हुनर की सराहना करता है। शायद हाथ की उन उँगलियों  ने जो कमाल दिखाया था, वह अन्यत्र देखने को भी नहीं मिल सकता था । 


सचमुच जेब काटना एक कला है। प्राचीन काल  में चोरी कला मानी जाती थी।बड़ी सूक्ष्मता का वह काम है। एक विदेशी उपन्यास  में लेखक ने जेबकतरों की  पाठशाला का वर्णन पढ़ लिया था । जेब काटने की कला में माहिर एक अवकाशप्राप्त दादा इस पाठशाला के बच्चों को यह धंधा सिखाता था। एक व्यक्ति को कोट पहनाकर उसकी जेब में बटुआ रखकर उस कोट के आसपास कई घुँघरू बाँधे जाते थे । बिना घुँघरू बजे बटुआ काटने की परीक्षा ली जाती थी और उत्तीर्ण छात्र पेरिस की सड़कों पर जेब काटने का व्यवसाय आरम्भ कर देना था।

महानगर कलकत्ता में एक ऐसा ही कलाकार था जो सिर्फ काला धन कमानेवालों  की जेब काटता था। पुलिस में शिकायत न होने के कारण उसका कुछ भी नहीं बिगडा। उसने कभी आम आदमी की जेब  साफ नहीं की | बंगले मे रहते  है , उसके पास टेलीफोन भी है, सभी प्रकार के ठाठ हैं। बरसों से वह इस कार्य में व्यस्त था। 

लेखक कहते हैं कि जेब काटने के पीछे हमारी लापरवाही कार्य करती है पर हम कितना भी सतर्क रहे जेबकतरे अपना काम कर ही लेते हैं। लेखक की आँखों के सामने ऐसे कई जेबकतरों के चलचित्र तरल हुए जो कौशल और कला के धनी थे । चोरी -चुपके आकर अपना पूरा कार्य निपटाकर उसे सफलता का अंजाम देनेवाले सभी जेबकतरे लेखक के अनुसार फुटपाथ के कलाकार थे। हमेशा अपने शिकार को लक्ष्य करनेवाले ये लोग विशिष्ट वर्ग के मालिक थे | महाठगिनी माया को उन्होंने अपने वश में कर लिया था ।


अपनी पराजय को स्वीकृत करके लेखक एक बार भी क्यों न हो अस्पर्शित कलाकार के गले लगकर उसे प्रणाम करके मिलना चाहता है।


इसतरह व्यंग्य शैली में लिखा गया साहित्य  अक्सर मनोरंजन तथा पाठकों को सहज स्वाभाविक शैली में अंतर्मुख बनाता है।  दैनंदिन जीवन की कई विसंगतियो को अधोरेखित करने का काम व्यंग्य साहित्य करता है। इस दृष्टि से प्रस्तुत व्यंग्य रचना काफी अर्थपूर्ण है ।

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