Print Friendly and PDF e-contents Radhanagari College: ‘अंतिम साक्ष्य’- कथावस्तु एवं शीर्षक

Sunday, 30 May 2021

‘अंतिम साक्ष्य’- कथावस्तु एवं शीर्षक

 

सत्र 6 : इकाई 2

‘अंतिम साक्ष्य’- कथावस्तु एवं शीर्षक

अनुक्रम :

2.1 उद्देश्य |

2.2 प्रस्तावना |

2.3 विषय विवेचन |

     2.3.1 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास की कथावस्तु |

     2.3.2 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास का शीर्षक |

2.4 स्वयं अध्ययन के प्रश्न |

2.5 पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ |

2.6 स्वयं अध्ययन के प्रश्नों के उत्तर |

2.7 सारांश |

2.8 स्वाध्याय |

2.9 क्षेत्रीय कार्य |

2.10 अतिरिक्त अध्ययन के लिए |

 

2.1 उद्देश्य :-

     इस इकाई को पढ़ने पर आप-

1. उपन्यास विधा में प्रचलित लघु उपन्यास से परिचित होंगे |

2. हिंदी साहित्य में चर्चित नारी विमर्श तथा परिवार विमर्श की जानकारी से परिचित

   होंगे |

3. स्वतंत्र भारत की सामाजिक, पारिवारिक व्यवस्था का परिचय प्राप्त होगा |

4. व्यक्ति के आचरण और व्यवहार के विभिन्न पहलुओं की जानकारी से परिचित

   होंगें |

5. स्त्री-पुरुष के बदलते संबंधों की जानकारी से परिचित होंगें |

6. कश्मीरी हिन्दू परिवार में नारी की स्थिति से परिचित होंगे|

7. बिखरते परिवार में पति के तथा मुखिया के अनैतिक आचरण से परिवार बिखरने

   की पीड़ा से परिचित होंगे |

8. बिखरते परिवार और विस्थापित लोग आदि के माध्यम से मनुष्य की आंदोलित

   मनोदशा से परिचित होंगे |

9. भारतीय नारी के विषय में समाज के संकीर्ण वैचारिक दृष्टिकोन की जानकारी

   से परिचित होंगें |

10. परिवार में उभरते अविश्वास और नयी पीढ़ी के अलगाव की व्यथा से परिचित

    होंगे |

2.2 प्रस्तावना :

हिंदी की सुप्रसिद्ध लेखिका चंद्रकांता जी का पहला उपन्यास है- ‘अंतिम साक्ष्य’जिसका द्वितीय संस्करण सन 2015 ई. में अमन प्रकाशन की ओर से प्रकाशित हुआ है | इस उपन्यास में उपन्यासकार ने बदलते मानवीय संबंधों की संवेदना तथा प्रेम-संबंधों की आकांक्षा को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है | आधुनिक सभ्यता के प्रभाव एवं परिणामों से आत्मीयता की जगह औपचारिकता का प्रचलन बढ़ता गया और संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों का जन्म हुआ | व्यक्ति अपने ही स्वजनों से कटकर रिश्तों की निर्जीवता, अर्थहीनता को बढ़ावा देने लगा | चंद्रकांता जी ने प्रस्तुत कथानक को पारिवारिक व्यवस्था के बदलते प्रतिरूपों का आधार बनाकर स्नेह, अपनापन, विश्वास,आस्था आदि भाव-भावनाओं के माध्यम से रिश्तों की गहराई और उथलेपन को भी अत्यंत कलात्मक रूप से अभिव्यक्त किया है |

समीक्षकों के अनुसार ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास जितना सामाजिकता से अपना सरोकार दर्शाता है उतना ही ‘व्यक्तिवाद’ और ‘पारिवारिकता’ से गहरा संबंध भी निर्माण करता है | प्रस्तुत उपन्यास की कथावस्तु मीना मौसी के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है जिससे इसे नायिका प्रधान उपन्यास की कोटि में रखा जा सकता है अथवा स्त्री-विमर्श के सजीव प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है |

2.3.1 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास की कथावस्तु :-

‘अंतिम साक्ष्य’ की कथा मीना नाम की एक छोटी सी लड़की की है जो आगे चलकर मीना मौसी नाम से जानी जाती है | माता-पिता के अभाव में बालिका मीना को चाचा-चाची संरक्षण देते हैं लेकिन उन्हें मीना को संभालने की इच्छा न थी | समाज के भय से उन्होंने मीना को अपने घर में रखा था | बारह साल की उम्र में मीना का एक पचास साल के बूढ़े लाला से जबरदस्ती विवाह किया जाता है | बूढ़े लाला की पहली पत्नी का देहांत हुआ है तथा उसके तीन-तीन जवान बेटे भी हैं | बुढा लाला शादी के बाद मीना को देखता है तो उसे अपराध बोध होता है | लाला के मन में दयाभाव जागृत होता है उसे मालूम है उसके जवान बेटे मीना को माँ नहीं मानेंगे तथा उनकी गिद्ध दृष्टि का लाला को भय सताता है | मीना के विषय में बूढ़ा लाला अस्वस्थ और आतंकित होता रहता है | स्त्री को भोगने की लपलपाती भूख ने उसके दिमाग पर पर्दा डाला था | स्त्री का शरीर केवल भोगने के लिए होता है इस जिद के कारण लाला ने शादी के लिए तुरंत स्वीकृति दी थी लेकिन मीना के चेहरे की मासूमियत तथा उसकी उम्र ने लाला को हराया | शादी के दो दिन बाद ही बूढ़ा लाला मीना के चाचा के घर जाकर मीनू को लौटाने की बात करता है |

मीनू के चाचा के घर की बागडौर चाची के हाथ में थी और चाचा केवल मूक दर्शक थे | बूढ़ा लाला मीनू का ब्याह कही और करने की बात करते हुए कहते हैं  कि, “पोती की उम्र की लड़की को घर में न रखूंगा |” चाची को इस बात का क्रोध आता है और वह लाला को होश में आने की बात कहती है | लाला भी अपराधबोध की भावना से स्वयं को संभालकर चाची पर मीना की उम्र बारह की जगह बीस बताकर फंसाने का आरोप लगाता है | चाची भी इतनी सहजता से मीना को वापस घर में लेने के लिए तैयार न थी | लाला चाची के चेहरे पर उत्पन्न पैसों की भूख का नशा और सौदेबाजी का इरादा पहचानता है | चाची भी मुंह पर झूठा क्रोध और दुःख का मिला-जुला भाव लाकर पांच हजार नकद रकम लेकर राजी होती है |

मीनू की उम्र इस योग्य न थी जो इस लेनदेन के ‘व्यवहार’ को समझ सके | चाची के घर जाते समय लाला का छोटा लड़का मीनू के सामने ‘हवस’ का प्रस्ताव रखता है इस घटना से मीनू को क्रोध नहीं आता पर अपने दुर्भाग्य पर वह फूट-फूटकर रोती है | अपनी जन्म देनेवाली माँ को उसने नहीं देखा था पर उस पर अपनी जान छिडकनेवाले उसके बापू (पिताजी) का चेहरा, उनका प्रेम वह नहीं भूली थी | ईश्वर ने भी शायद मीनू को बचपन से ही माता-पिता के अभाव में ही जीने के लिए पैदा किया था | परायापन, बोझ की भावना की यातनामय स्थिति का असमय ही मीनू को अनुभव प्राप्त होता है | चाची के घर वापस आने पर मीनू के चरित्र पर चाची शक करती है, लाला के बेटे के साथ संबंध की बात कहती है | इतना ही नहीं पैदा होते ही माँ-बाप को खानेवाली डायन मानकर उसका तिरस्कार कर उसके बोझ से छुटकारा पाना चाहती है |

नन्ही मीनू चाची के सामने दया की भीख मांगती है, घर का सारा काम करने, चाची की सेवा करने की बात भी कहती है लेकिन चाची नहीं मानी उसने गुंडे जगन के साथ मीनू का ब्याह तय किया | चाचा भी मीनू को समझाने तथा संभालने का प्रयास करते हैं मगर चाची के डर से चूप हो जाते हैं | जगन भीमकाय तथा यमदूत जैसा प्रतीत होता था | मीनू की मिन्नतों का चाचा पर कुछ भी असर नहीं हुआ और उसका हाथ जगन के हाथ में दिया जाता है | कुछ दिनों तक जगन के दानवी नोच-खसोट को मीना सहन करती है क्योंकि वह उसका पती था लेकिन जगन के मन में मीना के विषय में अपनेपन की भावना निर्माण ही नहीं हुई | मीनू जगन के काम में सहयोग देती थी | एक दिन जगन बड़े सबेरे मीनू को लेकर अपने मदनसिंह नाम के दोस्त के घर जाता है | मीनू ने जगन के दोस्त मदनसिंह का नाम पहली बार सुना था, वह आशंकित जरुर थी फिर भी पति के साथ होने के कारण निश्चिन्त भी थी | जगन ने पार्टी में जाने की बात कही थी लेकिन मदनसिंह के घर पार्टी का कोई आयोजन नहीं था | मदनसिंह तथा जगन मीनू को टैक्सी में बिठाकर एक कोठे पर लाते हैं | मदनसिंह एक दलाल है जो जगन को पैसे देकर मीनू को एक कोठेवाली के हवाले करता है | काम का बहाना बनाकर जगन तथा मदनसिंह वहाँ से भाग निकलते हैं | भोली मीनू को कुछ समझ नहीं आता और वह एक औरत से घर जाने की बात कहती है | वह औरत कोठे की मालकिन थी | मीनू की याचनाओं का उस पर असर नहीं होता वह आदेश के स्वर में कहती है “ यहाँ जो एक बार आता है? वापस नहीं जाता | इस घर के दरवाजे के सिवा अब सभी दरवाजे तुम्हारे लिए बंद हो गए |” यह शब्द सुनकर मीना के हृदय की गति ही मानो रुक जाती है | वह निराश्रित, भयाक्रांत दशा में रोई जा रही थी लेकिन उसकी इस अवस्था से किसी को लेना-देना नहीं था | मीनू की नजरों के सामने चाची की कुटिलता, जगन की दानवी प्रवृत्ति की तस्वीरें नाचने लगी थी | मीनू को सचमूच बेचा गया था उसका दूबारा सौदा हुआ था | मीनू अब वेश्या बन गयी थी |

कोठे की मालकिन ने व्यावसायिक स्वार्थ के कारण मीनू को धंधे को लगाने से पहले संगीत की तालीम देने की जिम्मेदारी एक संगीत मास्टर पर सौंप दी | संगीत मास्टर एक भला आदमी था | एक दिन मौका पाकर मास्टरजी मीनू को इस नरक से निकालकर शहर भाग जाते हैं | वहाँ जितना कुछ सिखाया जा सकता है, उतना मीनू को सिखाकर संगीत की अनेक परीक्षाओं में बिठाकर एक उच्च-स्तर की गायिका बनाते हैं | मास्टरजी मीना के लिए देवदूत थे, उनके सहयोग और प्रेरणा से मीना को कश्मीर रेडियो स्टेशन (आकाशवाणी) पर नौकरी मिलती है | मास्टरजी ही मीनू को कैलाश के घर का कमरा सस्ते किराए पर दिलवाते हैं |

कैलाश और रमेश सुखी दाम्पत्य है, जो एक-दूसरे का सम्मान भी करते थे और एक-दूसरे पर जान भी छिडकते थे | उनके परिवार में निरंतर हँसी-मजाक का माहौल रहता था | कैलाश तो मीना को अपनी सहेली ही नहीं बल्कि बहन भी मानती थी | रमेश और कैलाश मीना को अपने परिवार का ही एक सदस्य मानकर उससे आत्मीयता से पेश आते थे | वे दोनों पति-पत्नी घूमने जाते समय, होटल में खाने जाते समय मीना को हमेशा अपने साथ ले जाते लेकिन ऐसे समय मीना बोझिल दशा का अनुभव करती है | मीना को अपना दुखमय अतीत याद आता रहता है इसलिए वह रेडियो स्टेशन की नौकरी तथा कमरे का बंदी जीवन आदि के घेरे में ही स्वयं को व्यस्त रखने का प्रयास करती है | रमेश भी मीना के साथ छोटी बहन जैसा व्यवहार करके अपने यातनामय अतीत से बाहर आने के लिए उपदेश देता रहता है | मीना को डर लगता है कि कही उसका पुराना पति जगन या अतीत से सम्बन्धित कोई भी व्यक्ति इस शहर में दूबारा उसके जीवन को कुरेदने उपस्थित न रहे |

कैलाश तथा रमेश ने प्रेमविवाह किया था वे दोनों अलग-अलग जाति के थे | उन्होंने अपने परिवार का विरोध सहकर शादी की थी बाद में उन दोनों के परिवार ने उनके विवाह को स्वीकारा था | उन्होंने भी अपना प्रेमविवाह तथा दाम्पत्य जीवन सफल रूप में निभाया था | कैलाश तथा रमेश के जोड़े को देखकर मीना को जीने की प्रेरणा मिलती है | उसके जीवन में मास्टर जी के बाद कैलाश और रमेश ने ही आत्मीयता से रंग भरने का कार्य किया था | वे दोनों पति- पत्नी मीना को हर जगह अपने साथ लेकर जाते | उनके कारण ही मीना को एक नई जिंदगी प्राप्त हुई है ऐसी मीना की धारणा थी | कैलाश और रमेश दोनों भी मीना का अतीत जानते हैं  इसलिए अपने जीवन के वर्तमान क्षणों को यादों तथा चिंताओं के घेरे से बाहर निकालकर नये रूप से जीने की सलाह देते हैं | रमेश मीना को समझाते हुए कहता है “ तकलीफ भरी यादें किसी के लिए भी कष्टकारी होती है | रोना-धोना, अपमान-तिरस्कार यह तो घर-घर चलता है | यह तो जिंदगी की सच्चाईयां हैं | इनसे आदमी भागकर किस गुफा में जाएँगे?”

रमेश खाने के शौकीन थे इतवार के दिन कोई ना कोई प्रोग्राम बनाकर अपने परिवार के साथ हँसी-मजाक से खुशियाँ बांटते रहते | मीना भी इस परिवार से जुड़कर अपने जिंदगी का अर्थ ढूंढने के प्रयास करती है | उसे लगता है उसके जीवन के दुखमय क्षण बीत चुके हैं | उसमें आशा का संचार होता है, नये रिश्ते, सम्बन्ध उसके सामने नया रूप लेकर उसे घेरने लगे थे | उसे सबकुछ एक सुंदर सपने की तरह लगने लगा | लेकिन सहज, सुंदर और मधुर जीवन के क्षण मीना के जीवन में लिखना शायद भगवान भूल गया था |

कैलाश और रमेश के परिवार के साथ मीना घुलमिल गयी थी | वे दोनों पति-पत्नी मीना को अपने परिवार तक सीमित नहीं रखते बल्कि अपने नजदिकी रिश्तेदारों से भी उन्होंने अपने और मीना के संबंधों की जानकारी दी थी | ठाकुर प्रतापसिंह (बाऊ जी) और उनकी पत्नी से भी मीना की मुलाकात कैलाश और रमेश के कारण ही होती है | प्रतापसिंह की पत्नी जिसे सभी बीजी कहते हैं, वह कैलाश की कोई रिश्तेदार नहीं थी और उसके बिरादरी की भी नहीं थी फिर भी दोनों में बहन जैसा रिश्ता था |

ठाकुर प्रतापसिंह (बाऊ जी) के परिवार में उनके साथ उनकी पत्नी बीजी, बड़ा बेटा सुरेश और छोटा विवेक जिसे सभी विकी कहते थे, ये चार सदस्य रहते हैं | ठाकुर प्रतापसिंह दफ्तर में काम करते थे, घर की स्थिति अच्छी थी और गाँव के लोग भी उन्हें मानते थे | बाऊ जी के दफ्तर के इंजीनीअर साहब ने सड़क मजदूर दया को प्रतापसिंह (बाऊ जी) के घर छोटे-मोटे काम करने के लिए रखा था | दया घर के अनेक काम करता फिर भी बीजी उन्ही कामों को दूबारा अपने ढंग से करती | बीजी सुबह से शाम तक घर कार्यो में व्यस्त रहती | बाऊ जी, सुरेश बीजी को हमेशा टोकते क्योंकि नौकर दया द्वारा पूरे किए कामों को दूबारा करने की आवश्यकता न होने पर भी बीजी दिनभर उन्ही कामों में व्यस्त रहती थी | जिसके कारण आराम करने के लिए उसे फुर्सत भी नहीं मिलती और आराम करना उसके स्वभाव के खिलाफ भी था | बीजी निरंतर अत्यंत बारीकी से घर के सभी गतिविधियों पर ध्यान देती | उसकी नजरों से कोई भी बात नहीं छूटती थी | सुरेश निरंतर आवारापन का व्यवहार करता है | पड़ोस की सरोज नाम की लड़की को चुपके से अपने घर बुलाता है लेकिन बीजी से ये बात छूप नहीं पाती | बीजी सरोज को ही दोष देती है | सरोज छत पर पढाई का बहाना करके आती है और बार-बार सुरेश की तरफ झाँककर देखती है | ये सब बीजी को पता है इसलिए वह सरोज के पिता को लड़की के इश्कबाजी के बारें में बताना चाहती थी क्योंकि वह बिना माँ की लड़की है और भाभियाँ उसकी तरफ ध्यान नहीं देती | लेकिन विकी उसे मना करते हुए कहता है “ दुनिया में हजारों झंझट हैं | किस-किस का भला-बुरा सोचेगी? अपने ही सिर दर्द क्या कम हैं?”

सुरेश अपनी हरकतों से बाज नहीं आता | पड़ोस की पंडिताइन को भी वह नहाते समय झाँककर देखता है तब भी बीजी पंडिताइन को टोकती है | उस समय पंडिताइन बीजी को कहती है “ अपने मुंडे को रोक लो न बीजी |” इसका बीजी को गुस्सा आता है और वह पंडिताइन को डाँटते हुए कहती है “ मुंडों का काम ताक-झांक करना है | औरत को शर्म चाहिए |”

एक दिन बीजी के सामने ही सुरेश पंडिताइन की पीठ पर मजाक में ढेला मारता है | इस घटना से बीजी को काफी गुस्सा आता है और वह भूख-हड़ताल करती है | बाऊ जी उसे समझाकर खाने के लिए तैयार करते हैं फिर भी सुरेश को इस बारे में भला-बुरा नहीं लगता | विकी जब तक माँ खाना नहीं खाती तब तक खाना नहीं खाता | सुरेश इस परिवार की दुखती रग था | अनेक बार समझाने पर भी उसकी आवारापन की हरकते कम नहीं होती | विकी को सभी अच्छा लड़का मानते हैं लेकिन सुरेश के व्यवहार से सभी चिंतित और आशंकित थे | बीजी जल्दी से जल्दी सुरेश की शादी करना चाहती है क्योंकि घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी पड़ने पर उसके आचरण में परिवर्तन होने की वह बात सोचती है |

ठाकूर प्रतापसिंह (बाऊ जी) अपने बेटों के भविष्य को लेकर काफी आशावान है इसिलिए उनकी पढाई के लिए घर में स्वतंत्र कमरा तैयार करना चाहते हैं | उन्होंने अपने बेटों के विषय में काफी योजनाएँ बनायी थी | बाऊ जी सुरेश को आर्मी का बड़ा अफसर बनाना चाहते थे और छोटे विकी को चीफ इंजीनिअर | बीजी आर्मी की लड़ाइयों से घबराती थी इसलिए बेटे को आर्मी में भेजने उत्सुक न थी, इस पर बाऊ जी कहते हैं, “राजपूत के बेटे न लड़ेंगे तो क्या ब्राह्मण-बनिये लड़ेंगे |” “मेरे बेटे हैं | ठाकूर प्रतापसिंह के बेटे | क्लर्की-मास्टरी करने के लिए पैदा नहीं हुए |” बाऊ जी ने बेटों की अच्छी पढाई के लिए घर पर ही ट्यूशन शुरू की थी | इतना ही नहीं खुद भी बेटों को पढ़ाते थे | बाऊ जी शिकार के शौकीन थे | वे सुरेश को बचपन से ही शिकार पर ले जाते हैं | बारह साल की उम्र में ही सुरेश बंदूक चलाना सिख गया | लेकिन सुरेश का पढाई में मन नहीं लगा | वह अपने पिता की सभी योजनाओं को नाकाम बनाता रहा | 

कैलाश के कारण ही मीना की ठाकूर प्रतापसिंह के परिवार से पहचान होती है | कैलाश और रमेश हमेशा पिकनिक, खरीदारी, मंदिर की सैर, रात का डिनर, फिल्म देखना आदि प्रसंगों पर मीना को साथ लेकर चलते | मीना पहली बार कैलाश के साथ ही सुरेश की मँगनी पर ठाकूर प्रतापसिंह के घर आती है | वहाँ मीना की पहचान एक रेडियो कलाकार के रूप में करायी जाती है | मँगनी के अवसर पर गाने-बजाने के समय मीना एक गजल सुनाती है | ठाकूर प्रतापसिंह मीना के आवाज के प्रशंसक बन जाते हैं | कैलाश की फरमाइश पर मीना अनेक गीत सुनाती हैं | ठाकूर प्रताप मीना के गीतों तथा गजलों के विषय में अतिरिक्त उत्साह दिखाते हैं | रात के समय में भी ठाकूर प्रतापसिंह के हृदय में मीना का सुरीला स्वर गुंजता रहता है जिससे वह सो न सके |

बीजी के आदेश से सुरेश और विकी मीना को ‘मीना-मौसी’ कहने लगे | दो-तीन बार कैलाश के कारण ही प्रतापसिंह के परिवार से मीना की भेंट होती है | बीजी तथा मीना में अच्छी घनिष्ठता बढ़ती है | बीजी केवल मीना के साथ मित्रता नहीं निभाती बल्कि उसके साथ बहन जैसा व्यवहार करती है | मीना का अतीत जानकर बीजी को बूरा लगता है | बीजी अपने पति प्रतापसिंह को मीना की दर्दनाक स्थिति से अवगत कराती है और उसके प्रति सहानुभूती प्रकट करती है | प्रतापसिंह का हृदय मात्र इस लडकीनुमा स्त्री की ओर आकर्षित होता है | मीना के जीवन में उनका आगमन अप्रत्याशित रूप से होता है | वैसे वे अपनी जिंदगी में सुखी थे | खुद का मकान, सरकारी नौकरी तथा दो बेटे, हर दम उनकी चिंता करनेवाली पत्नी, दफ्तर में मान-सम्मान, घर के आसपास के लोग भी उन्हें मानते थे | सबकुछ था उनके पास लेकिन मीना से आंतरिक खिंचाव निर्माण होता है और वे अपने आप को रोक नहीं पाते | दिनभर पारिवारिक जिम्मेदारी तथा बच्चों में व्यस्त रहनेवाली बीजी के कारण प्रतापसिंह अपने हृदय की खाली जगह में मीना को देखते हैं | मीना ने भी असमय ही संबंधों का बीभत्स रूप केवल देखा नहीं बल्कि भोगा था परिमाण स्वरुप वह अपने आप को इस आत्मीय संबंधों से अधिक समय दूर नहीं रख सकी | प्रतापसिंह के साथ जुड़े आत्मीय संबंधों से मीना के हृदय में दूबारा प्रेम की लालसाएँ निर्माण होती है और नैतिक-अनैतिकता के बंधनों का विचार न करते हुए उनकी तृप्ति भी करती है|

मीना अकेली रहती थी इसलिए बीजी कई बार उसे अपने घर आकर रहने की बात कहती है लेकिन मीना नकार देती है | मीना को पता है एक ही घर में रहते हुए प्रतापसिंह और उनके बीच का आकर्षण बढ़ने की संभावना थी | मीना कई बार प्रतापसिंह को समझाती है कि वे उससे दूर रहे | वह उनके और बीजी के जीवन में दरार उत्पन्न करना नहीं चाहती फिर भी प्रतापसिंह उसकी बातों का मर्म समझकर भी स्वीकारने के लिए तैयार न थे | अपने काम की जगह मजदूर, ठेकेदार, इंजीनिअर आदि के बीच समझदारी का व्यवहार करनेवाले प्रतापसिंह अपने वैयक्तिक जीवन को नासमझ बनकर अंजान दिशा की ओर प्रवाहित करते हैं |

प्रतापसिंह के व्यव्हार में अव्यक्त परिवर्तन होने लगा | बीजी भी अनायास उसे महसूस करती है लेकिन किसी तर्क तक वह पहूँच नहीं पाती | एक दिन बीजी विकी को लेकर बाजार में सूट का कपड़ा खरीदने निकलती है | रास्ते में सोचती है कि मीना को साथ लेकर चलते हैं क्योंकि उनकी पसंद अच्छी थी | बीजी विकी को लेकर अचानक मीना के घर पहुँचती है | दरवाजा केवल बंद था छूने-भर से ही खुल गया | अंदर का दृश्य देखकर बीजी के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी, विकी अपनी माँ को पीछे खिंचने लगा | अंदर मीना के पलंग पर प्रतापसिंह लेटे थे और मीना मौसी उनके पास ही अधलेटी उनका माथा सहला रही थी मीना मौसी अपने शरीर के तमाम आवरणों से बेखबर भावाकाश में उड़ाने भर रही थी |  

बीजी की अकस्मात उपस्थिति से मीना हडबड़ाकर उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े संभालने लगी | बीजी के मन में तूफान उत्पन्न हुआ था | प्रतापसिंह भी पलंग पर संभलकर बैठ गए थे लेकिन उनके चेहरे पर किसी गलती का भाव न था | पत्नी के बेवक्त उपस्थिति से प्रतापसिंह झुँझला गए थे | अपनी गलती को महत्त्वहीन मानते हुए पत्नी पर ही आरोप लगाते हुए बोले “ क्या जासूसी करने आई थी |” बीजी इस शर्मनाक स्थिति से काफी दुखी हुई थी और ऊपर से पति का आरोप जिससे उसका पूरा शरीर भावावेश से कांपने लगा | विकी माँ की दशा देखकर भय से ग्रस्त हो रहा था | उसे लगा माँ कुछ भी करेगी | विकी माँ की बाँह पकड़कर खिंचने लगा | बीजी ने हृदय में उठनेवाले ज्वालामुखी के उद्रेक जैसे भाव से मीना मौसी को देखा और कहा “ उम्र भर का जहर तूने मेरे लिए ही संजो रखा था सर्पिणी |” इतना कहकर बीजी वहाँ से लगभग भागती हुई लौट पड़ी और विकी भी अपनी माँ की आंदोलीत दशा से घबराकर उसके साथ-साथ भागता रहा | घर आकर बीजी अपने कमरे में घुस गई और उसने विकी को भी मिलने से मना किया | रात होने पर विकी को कुछ अघटित होने की संभावना से डर लगने लगा और वह जागता रहा |

दूसरे दिन बीजी अपने दैनिक कार्यों में उलझी रही | दया को उसने काम से निकाल दिया | दिनभर घर के कार्यों में ही वह व्यस्त रहने लगी | बाऊ जी भी उस दिन की अप्रत्याशित घटना के बाद हर-रोज घर जल्दी लौटने लगे परंतु बाऊ जी और बीजी के बीच का वार्तालाप लगभग खत्म हो गया था | बीजी नाश्ता, खाना बनाती, कपड़े धोती, बाजार जाती लेकिन खाली नहीं बैठती | विकी हरसंभव दोनों के बीच बातचीत का पुल बनने की कोशिश करता परंतु बाऊ जी और बीजी के बीच की दूरी बढ़ती ही गयी | बाऊ जी महीने-भर के टूर के लिए चले गए परंतु दोनों के मुख से एक भी वाक्य नहीं निकला जिस घर में हर घटना पर बाऊ जी को प्रतिक्रिया देनेवाली बीजी आज शब्दविहीन काम करनेवाली यंत्र बन गयी थी | बाऊ जी को विकी स्टेशन पर छोड़ने जाते समय बीजी बहुत रोई थी | 

बीजी दिन-रात सोचती रहती, किसी से कुछ बात नहीं करती उसे अपने-आप से शिकवा होने लगा | जन्म से ही मध्यवर्गीय संस्कारों से भरा उसका मन तथा आदर्श, शील, संस्कार, मूल्यों का महत्त्व जानने एवं समझनेवाली बीजी को एहसास हुआ की उसके पती ने ही उसके अस्तित्व को नकारा है | वह इस घर की फालतू चीज बन गयी है | स्वयं के विचारों में व्यस्त रहनेवाली बीजी को ध्यान भी नहीं रहता कि वह क्या कर रही है | माँ की दशा देखकर विकी भी निराश होता | अपनी माँ को निराशा के घेरे से बाहर निकालने के लिए वह माँ को कहता है “तुम ऐसे रहोगी, तो मैं बोर्डिंग चला जाऊंगा |” यह वाक्य सुनकर बीजी के हृदय को ठेंस पहुँचती है और वह रोती है | बीजी विकी को कहती है- “ विकी घर तो तुम लोगों का ही है | अच्छा या बुरा,जैसा भी समझो | अभी तो मैं जिंदा हूँ, मेरे रहते घर छोड़ने की बात कैसे करता है रे तू ? ’’ माँ की दयनीय दशा देखकर उसे बाऊ जी पर क्रोध आता है | इतनी समर्पित माँ के साथ उन्होंने धोका, छल,कपट किया था | मीना मौसी के विषय में भी विकी के मन जहर उत्पन्न होता है क्योंकि बीजी मीना मौसी को बहुत मानती थी | उनके साथ बहन का रिश्ता जोड़ा था और उन्होंने बदले में क्या दिया, केवल विश्वासघात |

घर की जिम्मेदारी की चक्की में दिन-रात पिसनेवाली बीजी को अपनी निरर्थकता का बोध स्वस्थ बैठने नहीं देता वह अंदर ही अंदर कुढती रहती है | ‘चिंता’ नाम की बीमारी से ग्रस्त बीजी अचानक बिस्तर की साथी बन जाती है | बीजी के बिस्तर पकड़ने पर बाऊ जी ने खूब सेवा की | मामूली-सा बुखार तपेदिक का रूप धारण कर गया | शायद मरने से पहले बीजी की जीने की इच्छा ही मर गयी थी | और दो महीने के भीतर ही बीजी दुनिया से चल बसी |  

बीजी की मृत्यु के बाद बाऊ जी का घर हमेशा के लिए टूट गया जो अंत तक जुड़ न पाया | बीजी की मृत्यु के बाद सभी कर्म- अनुष्ठान करने का बुआ ने आग्रह किया और बाऊ जी ने भी इसका विरोध नहीं किया | पूजा-पाठ, ब्राह्मण भोज, भगवत गीता का पाठ , दान-धर्म सभी रीती-नीति का पालन किया गया |

पत्नी की मृत्यु से बाऊ जी एकाकी बन जाते है, सुरेश आवारागर्दी की सारी हदें पार करता है तो विकी बिना खाये-पिये निराश अवस्था में कभी दोस्तों के यहाँ तो कभी बुआ के घर पड़ा रहता है | बाऊ जी को लगता है उनका घर ढहने लगा है | उसे रोकने का उपाय उनके पास नहीं है फिर भी विचार करते रहते हैं | सभी रिश्तेदारों का अफ़सोस जताकर चले जाने के बाद बाऊ जी ने पत्नी की मृत्यु के तेरह दिन बाद ही मीना मौसी को अपने घर लाया | अब उनका मन इतना कठोर हो गया था कि किसी भी तरह की बेइज्जती से उन्हें अपने घर की चिंता अधिक सताने लगी | बेटे अपनी माँ की जगह मौसी को नहीं देंगे यह बाऊ जी को पहले से पता था फिर भी उन्होंने यह निर्णय लिया था |

बीजी की मृत्यु ने प्रतापसिंह का घर वीरान बन गया था | दोस्त, रिश्तेदार आकर तसल्ली जताते थे, लेकिन इस सदमे से प्रतापसिंह, सुरेश, विकी अपने आप को संभालने में नाकाम रहे | विकी को तो एक पल भी माँ का अभाव सहन नहीं हो रहा था | मीना मौसी का प्रतापसिंह के घर में आगमन हर किसी को खटक रहा था | मीना मौसी को तो इस स्थिति का एहसास हुआ था इसलिए उसे लगा उसने बहुत बड़ी भूल की है | ठाकूर प्रतापसिंह के प्रस्ताव को वह नकार न सकी और इस परिवार के साथ जुड़ने का प्रयास करने लगी | सुरेश ने तो मीना मौसी के आगमन के क्षण ही उससे रिश्ता जोड़ने की बात को अस्वीकार करते हुए कहा- “ हमें क्या? बाऊ जी मीना मौसी को ले आएँ या पक्का ढंग की रसूलन बाई को ....|” विकी की अवस्था इससे अलग नहीं थी वह सोचता है जिस औरत को बीजी ने बहन बनाया उसने ही सौत बनकर बीजी की जिंदगी छीन ली है | उसे मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूँ | मीना मौसी का इस घर में होना ही उसे असह्य लगने लगा |

सुरेश ने तो आवारागर्दी की सीमाएँ तोड़ दी | अब उसे बाऊ जी का डर नहीं लगता था और अब टोकने के लिए बीजी भी नहीं थी | परिणामस्वरुप जो चाहे करने का जैसा लाइसेन्स ही उसे मिल गया था | सुरेश दोस्तों को अपने  घर बुलाकर महफिले जमाता, दिनभर घर में यार-दोस्तों का हुडदंग मचा रहता | विकी का पढ़ने में मन नहीं लगता | सुरेश ने तो अब लड़कियों को भी घर में लाना शुरू कर दिया | शराब और औरत के जिस्म की जैसे उसे लत ही लग गई हो | विकी को इस स्थिति में घर में रहना नामुमकिन लगने लगा | वह सोचता है बाऊ जी ने बचपन से ही सुरेश के प्रत्येक हठ को पूरा करने का प्रयास किया था जिसका यह परिणाम दिखाई दे रहा है | सुरेश ने तो  बचपन से हाथ से निकलना शुरू किया था | छोटी उम्र में ही बाऊ जी की शराब की बोतलों में से वह एक-दो घूँट छूपकर पिता था | विकी को आज भी याद आता है बीजी ने सुरेश तथा बाऊ जी को अनेक बार  समझाने का प्रयास किया था मगर सभी कोशिशें नाकाम हुई थी | बाऊ जी बच्चों पर अतिरिक्त बोझ डालना नहीं चाहते थे लेकिन सुरेश ने इसका गलत लाभ उठाया |

स्कूल कॉलेज से प्रोफेसरों की शिकायतें बाऊ जी के पास आने लगी तब बाऊ जी को सुरेश के कारनामों का परिचय हुआ | सुरेश ने प्रोफेसर गुप्ता के विषय में बाऊ जी से शिकायत की, तो बाऊ जी ने कहा- “ प्रोफेसरों को दोष मत दो | तीन साल से इंटर में बैठे हो | आगे न बढ़ने की जैसे कसम खाई हुई है |” बाऊ जी की डाँट का उल्टा परिणाम हुआ | सुरेश पहले से ज्यादा आवारागर्दी करने लगा | प्रोफेसर गुप्ता ने कॉलेज का अनुशासन तोड़ने की शिकायत प्रिंसिपल से की | प्रिंसिपल ने सुरेश को कॉलेज से निकालने की नोटिस दे दी | दूसरे ही दिन सुरेश ने अपने दोस्तों को साथ लेकर प्रोफेसर गुप्ता के घर जाकर उस पर चाकू (से हमला लिया) चलाया | प्रोफेसर गुप्ता की बाँह से खून बहने लगा | उसी दिन पुलिस सुरेश को गिरफ्तार करने के लिए घर में आयी तो बाऊ जी के सभी सपने, योजनाएँ टूटकर ढह गए | उन्होंने स्वयं को संभालते हुए क्रोध में सुरेश को कहा- “जा चला जा इसी वक्त! दुबारा घर में कदम न रखना | मैं समझूंगा, मेरा एक ही बेटा है |”

बाऊ जी ने अपनी पहचान से एवं पुलिसों को पैसे देकर मामला रफा-दफा करवाया लेकिन घर आकर बेटे पर डंडे बरसाएँ | सुरेश और भी क्रोधित हुआ और अंदर जाकर आलमारी से भरी बंदूक निकालकर बाऊ जी पर निशाना साधना चाहता था उसी वक्त विकी समयावधान रखते हुए उसके हाथों से बंदूक छीन लेता है | बीजी यह दृश्य देखकर अत्यंत भयभीत होती है और निचे गिर जाती है | उस दिन के बाद घर का वातावरण ही बदल जाता है | बाऊ जी ने सुरेश का जेब खर्च बंद किया | दीवान ने बेटी की मंगनी तोड़ने का ऐलान किया | सुरेश इस घटना से और भी उत्तेजित हो उठता है | बाऊ जी की अलमारी से पैसे चुराकर सुरेश एक रात दीवान की लड़की मीता को लेकर बम्बई भाग जाता है | इस घटना के लिए सभी लोग प्रतापसिंह को जिम्मेदार मानते हुए उनकी आलोचना करते हैं | उधर सुरेश को बम्बई में काम न मिलने से दर-दर भटकना पड़ता है | ग्लैमर की दुनिया में भूख-प्यास से बेहाल होकर वह तड़पता है | जितने पैसे पास थे वह ख़त्म होने पर जिंदगी का असली चेहरा रंग दिखाने लगा | मीता ने भी अपने पिता को पत्र भेज दिया और तीसरे दिन उसका भाई आकर मीता को ले जाता है |

सुरेश बम्बई के फूटपाथों पर रहते हुए संघर्ष करने लगा | तब मनीष नाम का दोस्त उसे सेना में भर्ती होने का सुझाव देता है | तमाम औपचारिकताओं के बाद सुरेश सिपाही के पद पर सेना में भर्ती होता है |

विकी का मन भी घर से दूर रहने के लिए मचल रहा था | जब तक बीजी थी तब तक अपनेपन की बेडी उसे घर से दूर जाने नहीं देती थी | लेकिन बीजी के चले जाने के बाद विकी गहरा अकेलापन महसूस करता है | इसलिए बाऊ जी से कहता है “ मैं सोच रहा हूँ कि बोर्डिंग में रहकर पढ़ाई पूरी करूँ | इधर तो मुझसे रहा नहीं जाएगा अब |” ठाकूर प्रतापसिंह बेटे की मनोदशा जानते थे | उन्हें पता था विकी की अपनी माँ के साथ घनिष्ठता थी | उन्होंने विकी को नहीं रोका | विकी घर छोड़कर होस्टल में रहता है | एम्. एस-सी की परीक्षा के बाद वह कुछ दिन बुआ के घर रहता है लेकिन अपने घर नहीं लौटता | अख़बार पढ़कर विज्ञापन देखता है, नौकरी की तलाश करता है | एक मामूली-से वेतन पर दिल्ली में उसे नौकरी मिलती है | बाऊ जी को केवल सूचना देने के लिए मिलने जाता है, वह भी बुआ के कहने पर | बाऊ जी इतने कम पैसों पर नौकरी करने राजी विकी के निर्णय से संतुष्ठ न थे | वे उसे इतने पैसे तो घर में रहते हुए भी दे सकते हैं, ऐसी बात कहते हैं लेकिन विकी कहता है “मैं कहीं दूर जाना चाहता हूँ, बाऊ जी |’’ बाऊ जी जान गए थे उनका बेटा अब वापस नहीं लौटेगा | विकी को एक प्राइवेट कॉलेज में लेक्चरर का काम मिला था |

विकी के साथ काम करनेवालों ने विकी को इस पद पर काम कनेवालों की तथा यहाँ के विभागप्रमुख के बारें में जानकारी दी लेकिन विकी अपने निर्णय पर अडिग रहता है | उसके लिए सुरक्षा, सम्मान, अधिकार जैसे शब्द फालतू बन गए थे | उसे तो केवल काम चाहिए था | छोटा-बड़ा, स्थायी-अस्थायी की उसने चिंता नहीं की | दिल्ली में रहते हुए उसे बीजी, बाऊ जी, भाई सुरेश, अपना मकान तथा तनु की हमेशा याद आती है | बीजी के कहे गए शब्द हमेशा उसकी स्मृतियों में ताजा रहते हैं “घर तो तुम्हारा है, अच्छा या बूरा |” ये वाक्य उसे निरंतर अतीत में ले जाते हैं |

दिल्ली में रहते हुए विकी को पंकज, रैना, मिस सिंह जैसे आत्मीय मित्र मिलते हैं | वे हमेशा विकी के कमरे में आकर विभिन्न विषयों पर बहस करते रहते हैं | कुछ समय के लिए विकी अपने अतीत और अकेलेपन से बाहर आता है लेकिन उनके चले जाने के बाद वही अतीत विकी को अपने में समा लेता है |

मिस सिंह संगीत की अध्यापिका है, उसे देखकर विकी को तनु की याद आती है | तनु गुप्ता साहब की लड़की थी | कॉलेज के दिनों में विकी को तनु बेहद पसंद थी और तनु को भी विकी भा गया था | हर-रोज बिना कहे रास्ते में वह निश्चित मोड़ पर मिलते थे | रोज सुबह विकी तनु को उसकी दादी के साथ देखता था | तनु बहुत ही सरल और सीधी लड़की थी | विकी को आज भी याद आता है वह प्रसंग जब सुरेश ने बीजी का नाम लेकर तनु को एक दिन दोपहर को अपने घर बुलाया था और तब विकी कॉलेज से अचानक जल्दी घर लौटता है तो देखता है तनु उसके घर में क्या कर रही है | विकी चौंक पड़ता है क्योंकि बीजी बुआ के पास गयी है, बाऊ जी काम पर गए है ऐसे समय उनके घर तनु की उपस्थिति अनेक शंकाओं को जन्म देती है | क्योंकि विकी को अपने भाई सुरेश की आवारागर्दी और नियत की जानकारी थी | वह तनु को डाँटते स्वर में पूछता है “क्यों आई हो?” तनु जबाब देती है “बीजी ने बुलाया है |” विकी क्रोध से ओतप्रोत होकर बोलता है- “बीजी घर में नहीं है | सुरेश ऊपर है, चली जाओ |” “जा अपने घर इधर मत आना फिर कभी | कोई भी बुलाए, समझी |” तनु भयभीत हो गयी उसकी आँखों में आंसू तैरने लगे | लगभग भागती-सी तनु अपने घर लौट गयी | तनु के जाने के बाद सुरेश और विकी में झगड़ा होता है | सुरेश विकी को कहता है “तू बीच में टांग अडाना कब से सीख गया गधे |” साथ ही मेरे निजी मामलों में दखलअंदाजी न करने का आदेश देता है, तब विकी सुरेश को सुनाता है- “ यह आपका मामला नहीं है | तनु यहाँ नहीं आएगी | मैंने उसे मना कर दिया है |” तब सुरेश को विकी और तनु के दोस्ती की जानकारी प्राप्त होती है |

विकी हमेशा इस बीते हुए कल को मन में ताजा बनाने का प्रयास करता है | नीला शौक के लिए लेक्चरशिप करती है | उसके पिता का शहर में बड़ा व्यवसाय है | पैसों की कोई कमी नहीं है | नीला हर हफ्ते में दोस्तों को लेकर रेस्तराँ जाकर डिनर, लंच लेती है | विकी को तो यह संभव नहीं था लेकिन नीला को पता था विकी के घर की स्थिति सामान्य है और वह घर छोड़कर यहाँ दिल्ली में रहता है | नीला हमेशा विकी को खाने के लिए अपने साथ ले जाने का प्रयास करती है | विकी को उसका बार-बार बिल चुकाना पसंद नहीं था |

पहले-पहल विकी और नीला में दोस्ती हो जाती है | दो साल विकी और नीला एक साथ काम करते हैं | उनके बीच आत्मीयता के संबंध दृढ़ होने लगते हैं | दोनों छुट्टी के दिन हमेशा एकसाथ घुमने जाते हैं एकांत में बैठकर बाते करते हैं | निला विकी को अपने पहले प्रेम के बारे में पूछती है तब विकी की नजरों के सामने तनु का चेहरा आता है लेकिन वह कुछ नहीं बताता | नीला अपने बारे में सब कुछ बता देती है | साथ ही उन दोनों के बीच प्रेम का नया रिश्ता निर्माण होता है,  उसे दोनों भी स्वीकृति देते हैं |

एक दिन अचानक नीला सिंह की माँ को हार्ट अटैक आता है तब पंकज और विकी उन्हें देखने अस्पताल जाते हैं | नीला की माँ को देखकर विकी को अपनी माँ बीजी की याद आती है | बिस्तर पर पड़ी, मौत और जिंदगी के बीच झूलती हुई | विकी अपने आप को संभालता है और नीला की माँ से आत्मीयता से बातें करता है | नीला की माँ भी विकी को अपने घर आने का निमंत्रण देती है | कुछ ही दिनों में नीला के परिवार के साथ विकी की घनिष्ठता बढ़ती जाती है | नीला और विकी एक-दूसरे के और भी अधिक करीब आ जाते हैं | दो ढाई साल दिल्ली में रहकर विकी अपने घर से एकदम कट-सा गया था | बाऊ जी को देखने की इच्छा होती पर हिम्मत नहीं होती | दोस्त पंकज उसे समझाता है “जाओ यार! कुछ दिन पिताजी के पास रहकर आओ |” “एक उम्र होती है भई, जब आदमी लाख वैरागी होने पर भी बाल-बच्चों से कुछ उम्मीदें रखने लगता है |”  विकी भी बाऊ जी को मिलने के लिए तैयार होता है | विकी बाऊ जी के लिए कुछ चीजें खरीद लेता है और घर जाने की तैयारी करने लगता है तभी अचानक विकी का मकान मालिक विकी को मौसी का फोन आने की खबर देता है | मीना मौसी फोन पर विकी को बाऊ जी की तबीयत बिघड़ने की जानकारी देकर, विकी को देखने की बाऊ जी की इच्छा के बारे में बताती है |

विकी तुरंत अपने घर आता है और अपने पिता की क्षत-विक्षत अवस्था देखकर अपने आप को संभाल नहीं पाता | एक सड़क दुर्घटना में बाऊ जी बूरी तरह से घायल हुए थे | जिंदा रहने की उम्मीद न थी | सफेद पट्टियों में बंधा सिर, जिस पर खून के लाल धब्बे उभर आये थे | बाऊ जी ने आँख से इशारा किया | विकी निचे उनके मुँह तक झुक गया | बाऊ जी ने अपनी होठों से विकी को दुलारा, उनकी आँखों में आंसू छलकने लगे और कमजोर आवाज में उनके मुँह से एक वाक्य निकला “वहाँ खुश तो है विकी !” यह शब्द विकी का हृदय चीर रहे थे | विकी की आँखों से आंसू बहने लगे | वह सोचने लगा घर से दूर वह ख़ुशी ढूंढने गया था या अपने अस्तित्व को समेटने, यह वह तय नहीं कर पा रहा था |

सुरेश को तार भेजकर बाऊ जी की दुर्घटना की खबर दी थी | सुरेश तब राजौरीपुंज की सीमाओं पर तैनात था | सुरेश को बाऊ जी की मृत्यु का समाचार दिया था और विकी को दिल्ली से बुलवाया था | वह सोचता है अपने अंतिम समय पर भी बाऊ जी को उसकी याद न आयी | उसे कोई नहीं चाहता | घर में वह हमेशा पराया माना गया यह विश्वास बाऊ जी की मृत्यु ने और भी दृढ़ कर दिया | पिताजी ने मृत्यु शय्या पर भी सुरेश को माफ़ नहीं किया यह सोचकर सुरेश अपमान और दुःख के तीव्र ताप में जलता रहा | जिस अदृश्य तार से वह घर से जुड़ा था वह हमेशा के लिए टूट गया था | अब केवल दंश भरी स्मृतियाँ शेष थी जिनके सहारे जीने का वह निर्णय लेता है | सुरेश पत्र लिखकर विकी को अपना निर्णय सुनाता है “ सब कुछ ख़त्म होने के बाद मुझे मत बुलाओ | संस्कारों में मेरा विश्वास नहीं रहा | तुम अच्छे बेटे की तरह जिए, अच्छे बेटे की तरह अंतिम इच्छाएँ भी पूरी करोगे मुझे पुरा भरोसा है .... वहाँ आने का अब कोई अर्थ भी नहीं | नहीं, अब मैं कभी नहीं आऊँगा |”

विकी सोचता है बीजी की मृत्यु ने घर टूटने का आभास मिला था, सुरेश के पत्र ने उसे यथार्थरूप दे दिया था |

सुरेश ने पत्र में लिखा था “उसे कुछ नहीं चाहिए | वह उस जगह पर है, जहाँ पैसा इकठ्ठा करने का कोई महत्त्व नहीं है | अभी है, अभी नहीं |” बाऊ जी ने मृत्यु से पहले ‘विल’ लिखी है उसके अनुसार मीना मौसी के नाम कुछ रक्कम जमा है | मकान का एक कमरा उसे दिया था | बाकी घर किराये पर देने की बात थी और किराये के पैसे भी तीन हिस्सों में बाँटने की बात थी एक मीना मौसी और दो बेटों के लिए |

बाऊ जी के जाने के बाद उनका घर अब घर नहीं रहा |सुरेश ने स्वयं ही घर से संबंध तोड़ दिए | विकी घर में रहना नहीं चाहता तथा मीना मौसी का कोई सहारा ही नहीं था | एक समय बाऊ जी का यह घर परिवार के सदस्यों को जोड़नेवाली महत्त्वपूर्ण कड़ी थी आज यह कड़ी कमजोर होकर टूट गयी थी | विकी मकान को किराये पर न देकर बिकने का निर्णय लेता है | मीना मौसी विकी के निर्णय का विरोध नहीं करती | वह तो उम्रभर बनजारन बनकर जी है | अब किस चीज का मोह और किस के लिए? ऐसा वह सोचती है |

बाऊ जी के खास मित्र गुप्ता जी ने घर की नीलामी, खरीददार तय करना, ऋण का भुगतान आदि के लिए काफी दौड़-धूप करके विकी की मदद की थी | मकान का कुछ सामान धर्मार्थ संस्थावालों ने लिया था | वर्षों से जुड़े रहने के बाद निर्जीव वस्तुओं से भी लगाव तोड़ते जी टूटता गया था | कुछ जरुरी सामान बंधवाकर विकी और मीना मौसी ड्योढ़ी से बहार आकर सीढियाँ उतरने के बाद विकी मुड़कर देखता है, उसका घर | बीजी, बाऊ जी के संस्कार, स्नेह, दुलार, सपने सब एक-एक करके नजरों के सामने नाच रहे हैं | विकी ने अपने जन्म से लेकर वर्तमान तक प्रत्येक क्षण का सुख-दुःख जिन दीवारों के अंदर भोगा उनको छोड़कर जाते समय कदम रुक गए | स्मृतियों के नन्हे-नन्हे हाथ विकी को पीछे की ओर खींचते हैं, पर विकी को आगे बढ़ना था | नई जिंदगी के लिए विगत से कटना था | मीना मौसी विकी का हाथ पकड़कर उसे आगे बढ़ा रही थी | वह पीछे नहीं देखती क्योंकि वह जानती है-कटना, जुड़ना, जख्मी होना, सभी अनिवार्य है, जीने के लिए |

ढक्की का यह आखिरी मकान कई दिनों तक वीरान पड़ा रहा | उसकी एक-एक इंट खिसकती गयी | लोग कहते हैं खामोश रातों में यहाँ भूत-प्रेतों की सदाएँ गुंजती हैं | पलस्तर उतरी नंगी दीवारें और मलबे के ढेर मन में दहशत निर्माण करते थे | दोपहर में कुत्ते यहाँ आराम से सोए रहते थे | इस मकान के सहारे जीनेवाले कुछ मुसाफिर यात्रा कर चले गए, कुछ अलग-अलग राहों पर अपनी मंजिलों को तलाशने निकल गए | अजनबी भीड़ में अपनी जमीन से कटकर भी अपने वजूद को तलाश रहे हैं और यही तलाश सच है, शेष सब झूठा | क्योंकि यही तलाश जिंदगी है |  

2.3.2 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास के शीर्षक की सार्थकता :-

किसी भी साहित्यिक कृति की पहचान उसके शीर्षक से होती है | शरीर या देह में जो स्थान मस्तक का होता है, वही स्थान किसी रचना के शीर्षक का होता है | शीर्षक का प्रभाव पाठकों पर सीधा पड़ता है | किसी भी रचना का शीर्षक जितना उत्सुकता, कौतुहल, उत्कंठा निर्माण करनेवाला हो उतना ही पाठकों का आकर्षण उस रचना के प्रति बढ़ता जाता है | केवल कौतुहल जगाना शीर्षक की भूमिका नहीं हैं अपितु कथा के अंत तक शीर्षक विषय वस्तु के संदर्भ में जुड़ा रहे अथवा चलता रहे तभी विषय का महत्त्व, गंभीरता, समर्पकता एवं सार्थकता कायम रहती है | इस दृष्टि से चंद्रकांता जी द्वारा रचित उपन्यास का शीर्षक ‘अंतिम साक्ष्य’ सफल एवं सार्थक हुआ दिखाई देता है | उपन्यास का यह शीर्षक पढ़ते ही पाठकों के मन में कौतुहल निर्माण होता है, इसमें चित्रित विषयवस्तु को जानने की उत्कंठा पाठकों के मन में बैचेनी निर्माण करती है | यह शीर्षक प्रथमदर्शी ही पाठकों के मन अनेकानेक प्रश्नों को उत्पन्न कर उसके जवाबों को जानने की मानसिकता तैयार करता है |

प्रस्तुत उपन्यास का शीर्षक भावात्मकता का बोध करता है | इस उपन्यास के सभी पात्रों के बनते-बिघडते रिश्तों का ठाकूर प्रतापसिंह का मकान प्रत्यक्षदर्शी प्रमाण है | आत्मीय संबंध, प्रेम, स्नेह के रिश्ते, पारिवारिक मूल्य, साहचर्य की भावना आदि का अभिन्न घटक रहनेवाले इस मकान और उसकी दीवारों ने टूटते-कटते, खत्म होते रिश्तों का दुःख भी अनुभव किया था | बाऊ जी, बीजी, सुरेश, विकी इनको एकसूत्र में बांधकर रखनेवाला उनका यह घर मीना मौसी के आगमन से धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोने लगता है | परिवार के सदस्यों के बीच का अलगाव मकान की ईंटो का खिसकने का बोध कराता है | ठाकूर के परिवार के ध्वस्त होने की अंतिम साक्ष्य  उनका यह घर कथावस्तु के उतरार्ध तक आते-आते अंतिम सांसे लेता हुआ धर्मशाला का रूप  धारण कर लेता है | बीजी तथा बाऊ जी की मृत्यु, सुरेश का घर से संबंध तोड़ना और अंत में विकी तथा मीना मौसी के द्वारा इस मकान को बेचकर इससे दूर जाने की घटना ने बावड़ा बाजार के ढक्की के इस अखिरी मकान की अब केवल स्मृतियाँ ही शेष बची रहने की साक्ष्य देता यह मकान | छोटी-बड़ी आकांक्षाओं, दुखों-तकलीफों और अकेलेपन की यातनाओं की अंतिम साक्ष्य देती नंगी दीवारों और मलबे के ढेर पर अथवा वीरान जगह पर धर्मशाला से बेहतर और क्या चीज बन सकती है ?

प्रस्तुत उपन्यास स्त्री के लिए पुरुष की उपयोगिता कितनी महत्त्वपूर्ण है, तथा स्त्री को प्रेम, स्नेह, दया एवं करुणा से सामाजिक प्रतिष्ठा न मिलने का जब कि एक पत्नी बनकर मिलने की साक्ष्य है यह उपन्यास | पति-पत्नी के बीच तीसरे के आने से परिवार के टूटने और बिखरने की साक्ष्य है यह उपन्यास | नारी मन एवं नारी जीवन की पीड़ा की तथा प्रेम के कारण परिवार के बनने-बिगड़ने की साक्ष्य है यह उपन्यास | मीना के मनहूस एवं अभागी जीवन की तथा नारी अत्याचार तथा शोषण की साक्ष्य है यह उपन्यास | विकी, सुरेश, मीना, बीजी, बाऊ जी के जीवन के घात प्रतिघात की तथा मीना के अकेलेपन और बीजी के सूनेपन की तथा परिवार में टूटते विश्वास की अंतिम साक्ष्य है | हर-भरा, फूला-फला घर से धर्मशाला बनने तक की सुखपूर्ण तथा दुखद घटनाओं की साक्ष्य है यह उपन्यास | विवाहपूर्व और विवाहेत्तर प्रेम संबंधों की तथा अनमेल-बेमेल विवाह की साक्ष्य है यह उपन्यास | स्त्री अस्मिता, अस्तित्व, अत्याचार, शोषण एवं जिजीविषा की, शोषण के विभिन्न स्तर तथा ध्वस्त हो रहे जीवन मूल्यों की साक्ष्य है यह उपन्यास |

खंडहर होती हवेली के धर्मशाला बनने की कल्पना से जुड़ी घटना जो अंतिम साक्ष्य है, यह केवल पारिवारिक विघटन की परिणति नहीं है, बल्कि ऐसा भी कहा जा सकता है कि विस्थापित होती पीढ़ियाँ के कारण पूरी कश्मीरी संस्कृति की विरासत के रूप में कुछ भी शेष न रहने की | अंतिम साक्ष्य का अंश उन जर्जर होती हवेलियों का भी दर्द है जो उपन्यासकार के साथ-साथ वहाँ की अनेक पीढ़ियों ने भोगा है | इस तरह लेखिका द्वारा प्रस्तुत रचना को दिया गया शीर्षक कथावस्तु के माध्यम से बदलते संबंध एवं परिस्थितियों की पहचान कराने ने सफल हुआ दिखाई देता है | अत: उपन्यास का यह शीर्षक सार्थकता की दृष्टि से अत्यंत समीचिन लगता है |

2.4 स्वयं अध्ययन के प्रश्न :

1 अंतिम साक्ष्य ....... का उपन्यास है |

2 अंतिम साक्ष्य उपन्यास की प्रमुख स्त्री पात्र का नाम ......... है |

3 माता-पिता के अभाव में बालिका मीना को ...... सँभालते हैं |

4 बारह साल की उम्र में मीना का पचास साल के ...... से विवाह किया जाता है |

5 बूढ़े लाला के ....... जवान बेटे है |

6 मीना की शादी तोड़ने के लिए चाची बूढ़े लाला से ...... नकद रकम लेती है |

7 मीना का दूसरा विवाह ...... से होता है |

8 मदनसिंह पेशे से एक ...... है |

9 कोठे से मीना को ........ बाहर निकालकर शहर भाग जाता है |

10 मीना को कश्मीर ......... पर नौकरी मिलती है |

11 रमेश की पत्नी का नाम ........ था |

12 ठाकुर प्रतापसिंह की पत्नी को सभी ........ कहते थे |

13 ठाकुर प्रतापसिंह के नौकर का नाम ........ था |

14 ........... छत पर पढाई का बहाना करके आती है और बार-बार सुरेश को ओर

   झाँककर देखती है |

15 ठाकुर प्रतापसिंह के दो बेटों में से .....अधिक आवारापन का व्यवहार करता है |

16 बाऊजी सुरेश को ....... बनाना चाहते है |

17 ...... के अवसर पर मीना पहली बार ठाकुर प्रतापसिंह के घर जाती है |

18 मीना मौसी के विषय में विकी के मन में ....... उत्पन्न होता है |

19 बीजी का बुखार .......... का रूप धारण कर लेता है |

20 बीजी की मृत्यु के बाद बुआ ने ........ का आग्रह किया |

21 पत्नी की मृत्यु के ........ दिन बाद ही बाऊजी मीना मौसी को अपने घर ले आते

   है |

22 सुरेश अपने दोस्तों को साथ लेकर ....... पर चाकू से हमला करता है |

23 सुरेश को ....... और ...... की लत गई थी |

24 बाऊजी और सुरेश के झगड़े में ............. समयावधान रखते हुए सुरेश के हाथों

    से बंदूक छीन लेता है |

25 पैसे चुराकर सुरेश दीवान की लड़की को लेकर ....... भाग जाता है |

26 ........ परीक्षा के बाद विकी बुआ के घर रहता है |

27 मनीष नाम का दोस्त सुरेश को ....... का सुझाव देता है |

28 विकी को ....... में लेक्चरर का काम मिलता है |

29 मिस सिंह ........ की अध्यापिका है |

30 नीला ...... के लिए लेक्चरशिप करती है |

31 मिस नीला सिंह और विकी के बीच ......... का रिश्ता निर्माण होता है |

32 .......... दुर्घटना में बाऊजी बुरी तरह से घायल होते है |

33 बाऊजी की दुर्घटना के अवसर पर सुरेश ...... की सीमाओं पर तैनात था |

34 विकी मकान को किराये पर न देकर .......... का निर्णय लेता है |

35 बाऊजी के घर की जगह ........ बनने जा रही थी |

 

2.5 पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ :-

नकद – रोकड़, रुपया, पैसा

बागडौर – जिम्मेदारी

भीमकाय – विशाल आकारवाला

डायन – भूतनी,

माहौल – वातावरण, परिवेश, परिस्थिति

कुरेदना – खरोंचना, उकेरना

कुटिलता – दृष्टता, धोकेबाजी, छल-कपट

तालीम – सीख, कवायत,सबक. शिक्षा-दीक्षा

बिरादरी – एक ही जाति के लोगों का समूह, जातीय समाज

फरमाइश – निवेदन, आग्रह

इश्कबाजी – प्रेम के खेल में पडना, प्यार का खेल

अप्रत्याशित – अनपेक्षित, असंभावित, आकस्मित

लडकीनुमा – कन्या, बेटी

झुंझलाहट – क्रोध, चिडचिडाहट

तपेदिक – एक बीमारी, टी.बी. दिक, यक्ष्मा

हुडदंग – ऊधम, उत्पात, उपद्रव

ग्लैमर – फैशन की दुनिया, आकर्षण, चकाचौंध, चमकदार

रेस्तरां – भोजनालय, होटल

डिनर – रात्रि का भोजन

विल – वसीयतनामा, इच्छापत्र

दुलार – लाड-प्यार

नीलामी – खरीदने-बेचने की क्रिया

भुगतान – निबटारा, भरपाई, चुकती

ऋण – कर्ज, उधार

विस्थापित -  स्थानांतरन, अपने स्थान से हटा दिया गया

विरासत – पैतृक संपत्ति, उत्तराधिकार

समीचिन – उचित, सही, योग्य

2.6 स्वयं अध्ययन प्रश्नों के उत्तर :-

1 चंद्रकांता  2 मीना मौसी  3 चाचा-चची  4 बूढ़े लाला  5 तीन  6 पांच हजार  7 जगन  8 दलाल  9 संगीत मास्टर  10 रेडियो स्टेशन  11 कैलाश  12 बीजी    13 दया  14 सरोज  15 सुरेश 16 आर्मी अफसर  17 मँगनी  18 जहर             19 तपेदिक   20 कर्म- अनुष्ठान  21 तेरह  22 प्रोफेसर गुप्ता    23 शराब    24 विकी  25 बम्बई  26 एम. एस-सी  27 सेना भर्ती  28 प्राइवेट कॉलेज       29 संगीत  30 शौक  31 प्रेम  32 सड़क  33 राजौरीपुंज 34 बिकने 35 धर्मशाला

2.7 सारांश :-

1 यह उपन्यास हमारे देश की बदलती परिस्थितियों का लेखा-जोखा है |

2 इस उपन्यास में कश्मीरी संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक सभ्यता का भी चित्रण

  किया है |

3 पारिवारिक संबंधों के बदलते संदर्भो के माध्यम से मनुष्य की मानसिकता उथल-

  पूथल को लेखिका ने यहाँ अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रित किया है |

4 भावनाओं में बहकर निर्णय लेने की मनुष्य की प्रवृत्ति के परिणामों ने पारिवारिक

  व्यवस्था को खतरे के कगार पर लाकर खड़ा करने तथा परिवार बिखराव की

  समस्या का चित्रण किया है |

5 स्त्रियों के प्रति समाज एवं परिवार की नकारात्मक सोच एवं उनके शोषण का

  चित्रण प्रस्तुत उपन्यास करता है |

6 इस उपन्यास में ‘बीजी’ इस चरित्र के माध्यम से भारतीय नारियों की परम्परावादी

  स्थिति का चित्रण किया गया है |

7 यह उपन्यास स्त्री विमर्श के साथ-साथ परिवार विमर्श की भी हिमायत करता

  दिखाई देता है |

8 यह कथा युवाओं के उन्मुक्त आचरण और व्यवहार से उनके गिरते स्तर का

   यथार्थ चित्रण करता है |

9 यह उपन्यास स्त्री-पुरुष के संबंधों का सूक्ष्म रेखांकन है | आज के आधुनिक युग

  में विवाह पूर्व और विवाहेत्तर संबंध स्थापित हो रहे है अनैतिक तथा अवैध संबंधों

  के बढ़ते प्रचलन से उत्पन्न तनावपूर्ण स्थितियों का परिचय यथार्थता के साथ

  किया है |

10 व्यक्ति के उपभोगतावादी प्रवृत्ति के परिणामस्वरुप पारिवारिक बिखराव, मूल्यों

   का ह्रास, अनैतिकता, अलगाव जैसी समस्याओं का जन्म हुआ | जिससे

   आदर्श सामाजिक रचना का स्वरुप कैसे बदलता- बिघडता गया इसका प्रमाण

   इस उपन्यास के माध्यम से प्राप्त होता है |

2.8 स्वाध्याय :-

अ) लघुत्तरी प्रश्न एवं दीर्घोत्तरी प्रश्न

1 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास की कथावस्तु का सारांश लिखिए |

2 उपन्यास के तत्वों के आधार पर ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास की समीक्षा

  कीजिए |

3 मीना मौसी ‘‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास की प्रमुख स्त्री चरित्र है |’ कथानक के

  आधार पर विवेचन कीजिए |

4 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास में चित्रित विकी (विवेक) की चारित्रिक विशेषताओं को

   लिखिए |

5 “ ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास बिखरते परिवारों का सजीव प्रमाण है |” कथावस्तु के

  आधार पर स्पष्ट कीजिए |

6 देश, काल, वातावरण की दृष्टि से ‘अंतिम साक्ष्य’ की समीक्षा कीजिए |

7 ‘अंतिम साक्ष्य’ में वर्णित संवाद-योजना पर प्रकाश डालिए |

8 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास में चित्रित ठाकुर प्रतापसिंह (बाऊजी) का परिचय दीजिए|

9 आदर्श पतिव्रता नारी के रूप में बीजी की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए|

10 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए |

11 ‘अंतिम साक्ष्य’ उपन्यास का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए |

आ) ससंदर्भ के प्रश्न :-

1 “ मीनू को लौटा रहा हूँ | उसका विवाह कहीं और कर दो | पोती की उम्र की

  लड़की को घर में न रखूँगा |” (पृष्ठ-15)

2 “ बेटी ! लडकियों का अपना ही घर भला ! कब कैसा वक्त आए, किसे मालूम ?

    हम लोग भी क्या हमेशा बने रहेंगे ? ” (पृष्ठ-17)

3 “ छि:- छि: यह कैसी बातें करती हो मीना ! न कहना चाहो, तो मत कहो; लेकिन

    मैं तुम्हारी बातों से सहमत नहीं हूँ, इतना जान लो |” (पृष्ठ-28)

4 “ तकलीफ-भरी यादें किसी के लिए भी कष्टकारी होती है | रोना-धोना, अपमान-

    तिरस्कार यह तो घर-घर चलता है | यह तो जिंदगी की सच्चाइयां हैं | इनसे

    आदमी भागकर किस गुफा में जाएँगे ?” (पृष्ठ-29)

5 “माई गॉड! इत्ती गर्मी में भी आराम करने का मुड नहीं | खुद को तो चैन नहीं,

   बेचारे जानवरों को भी पलभर दम नहीं लेने देगी |” (पृष्ठ-35)

6 “ उम्र-भर का जहर तूने मेरे लिए ही संजो रखा था सर्पिणी |” (पृष्ठ-37)

7 “ क्या जासूसी करने आई थीं |” (पृष्ठ-37)

8 “ विकी, घर तो तुम लोगों का ही है | अच्छा या बुरा, जैसा भी समझो | अभी

   तो मैं जिंदा हूँ, मेरे रहते घर छोडने की बात कैसे करता है रे तू? ” (पृष्ठ-40)

9 “ राजपूत के बेटे न लड़ेंगे, तो क्या ब्राह्मण-बनिए लड़ेंगे? मेरे बेटे हैं | ... ठाकुर

   प्रतापसिंह के बेटे | क्लर्की-मास्टरी करने के लिए पैदा नहीं हुए |” (पृष्ठ-42)

10 “ हमें क्या? बाऊ जी मीना मौसी को ले आएँ या पक्का ढंगा की रसूलबाई को,

   हमें क्या फर्क पड़ने वाला? ” (पृष्ठ-55)

11 “ साला ! शिकायत करता है | मैं कोई बच्चा हूँ, जो बाऊ जी मुझे डांट-डपटकर

    पढ़ने को मजबूर करेंगे ? जो जी में आएगा, करूँगा | तेरे बाप का क्या जाता

    है? ” (पृष्ठ-60)

12 “ जा, चला जा इसी वक्त ! दुबारा घर में कदम न रखना | मैं समझूँगा, मेरा

   एक ही बेटा है |” (पृष्ठ-60-61)

13 “ यह आपका मामला नहीं है | तनु यहाँ नहीं आएगी | मैंने उसे मना कर दिया

   है |” (पृष्ठ-66)

14 “ दोस्त! कभी अपने को भूलकर खुली आँखों से दुनिया देखो | तुम-हम लाखों

    लोगों से ज्यादा खुसनसीब हैं | कम-से-कम हम जी तो रहे हैं | जिंदगी अपने-

    आप क्या कम खूबसूरत है? ” (पृष्ठ-76)

15 “ वहाँ खुश तो है विकी |” (पृष्ठ-76)

16 “ बाऊ जी! तुम्हें अकेलेपन की यातना देकर हम किसी ऋण से उऋण तो

   ही हुए | तुम्हारे स्वप्नों की तसवीर को बदरंग करके हम खुद भी कोई नई

   तसवीर न बना पाए |” (पृष्ठ-77)    

2.9 क्षेत्रीय कार्य :-

1 ‘संयुक्त परिवार – आदर्श परिवार’ विषय पर निबंध लिखिए |

2 ‘कश्मीरी संस्कृति और प्रकृति’ पर निबंध लिखिए |

2.10 अतिरिक्त अध्ययन के लिए

1 अर्थान्तर – चंद्रकांता |

2 चलती चाकी – सूर्यनाथ सिंह |

3 पचपन खंबे लाल दिवारें – उषा प्रियवंदा |

4 सूरजमुखी अँधेरे के – कृष्णा सोबती |

 

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