Print Friendly and PDF e-contents Radhanagari College: गोशाला चारा और सरपंच (व्यंग्य)

Sunday 30 May 2021

गोशाला चारा और सरपंच (व्यंग्य)

 (Dr Eknath Patil)

गोशाला चारा और सरपंच (व्यंग्य)


- शंकर पुणतांबेकर


लेखक परिचय :


आधुनिक हिंदी व्यंग्य साहित्य को बहुमुखी बनाकर आलोकित करनेवाले प्रतिभाशाली व्यंग्य लेखकों में अग्रणी डॉ. शंकर पुणतांबेकर का जन्म 26 मई, 1925 को मध्य प्रदेश के गुणा जिले में कुंभराज गाँव में हुआ। विदिशा, ग्वालियर, आगरा आदि स्थानों से एम. ए., पीएच. डी. प्राप्त करने बाद वे विदिशा (मध्यप्रदेश) तथा जलगाँव (महाराष्ट्र) में प्राध्यापक पद पर कार्यरत रहे। उन्होंने बडी सूक्ष्मता और सांकेतिकता के साथ नये सामाजिक यथार्थ और विसंगतियों को अपने व्यंग्य लेखन द्वारा वाणी दी है।


'मेरी फाँसी', प्रकाशित रचनाएँ- 'शतरंज के खिलाडी', 'दुर्घटना से दुर्घटना तक', 'कैक्टस के काँटे', 'प्रेम विवाह', 'विजिट यमराज की', 'अंगूर खट्टे नहीं है', 'पतनजली', 'एक मंत्री स्वर्गलोक में' आदि।


पुरस्कार 'मुक्तिबोध', 'अहिन्दी भाषी साहित्यिक', 'अक्षर साहित्य सम्मान', 'व्यंग्य श्री', 'कला-संस्कृति समाजसेवी' आदि।

  प्रस्तुत व्यंग्य रचना में गाँव का सरपंच ज्वालाप्रसाद गोशाला की गार्यो को दिये जानेवाले चारे में भ्रष्टाचार करता है। गाँव का पढ़ा-लिखा साक्षर युवक रामदास सरपंच के भ्रष्टाचार को प्रकाश में लाकर गाँव में प्रबोधन करने का प्रयास करता है तो उसे सरपंच के द्वारा धमकाया जाता है। सरपंच का पाला हुआ गुंड़ा कल्लू भी आगे चलकर उसका साथ नहीं देता और सरपंच की पत्नी भी उसकी निंदा करती है तो वह बौखला जाता है। चुनाव में किसी ज्योतिषी के कहने पर एक बैल को चुनाव का चिन्ह बनाकर ज्वालाप्रसाद चुनाव तो जीत जाता है किंतु इसके बाद चारा घोटाले की पूँछताछ के दौरान क्रोध में आकर प्रतिबंध करनेवाले पटेल पर किसी जानवर की तरह टूट पड़ता है। हराम के चारे से ज्वालाप्रसाद की दबंगगिरी समाप्त होकर वह खुद साँड़ बन जाता है/                                                 एक गाँव की गोशाला में स्थित गायों की यह शिकायत थी कि उन्हें पेटभर चारा नहीं मिलता है। गोशाला के निरीक्षण करनेवाले निरीक्षकों से वे अपनी शिकायतें सुनाती थी। उनके मतानुसार वहाँ का रखवालदार चारा खाता था । वास्तविकता यह थी कि इन भूखी गायों की आवाज निरीक्षकों तक नहीं पहुँचती थी क्योंकि असली घोटाला तो वहीं पर था। जो लोग इन निरीह गार्यो के चारे की मलाई बीच में हाथ मारकर खा रहे थे, वो उनकी आवाज कैसे सुन सकते थे?

गाँव का साक्षर नौजवान रामदास गायों पर होनेवाले इस अन्याय से अस्वस्थ हो गया। इन निरीह गायों को न्याय देने का निर्णय उसने ले लिया। वह गाँव के बच्चों को पढ़ाता था। गाँव की पाठशाला में रामदास अध्यापक बनने के लिए इच्छुक था पर सरपंच का दूर का कोई रिश्तेदार सरपंच ज्वालाप्रसाद के कारण वहाँ अध्यापक बन गया  /रामदास मात्र अभी तक नौकरी की खोज कर रहा था।

रामदास गायों के चारे में हो रहे भ्रष्टाचार को प्रकाश में लाने तथा गाँववालों का इसके बारे में प्रबोधन करने के लिए ढोल को गले में लटकाकर प्रभात फेरी निकालकर तीखे स्वरों में लोगों को अपना मन का आक्रोश सुनाने लगा। इससे गाँव के लोग प्रभावित हुए। 

कुछ लोग तो रामदास की इस कृति से डर गये, विशेषतः गाँव में स्थित वृद्ध लोगों को लगा कि रामदास सरपंच से बहुत बड़ी दुश्मनी मोल रहा है। सच्चाई तो यह थी कि गोशाला का रखवालदार गोबरधन और सरपंच ज्वालाप्रसाद की मिलीभगत से ही गाँयों के चारे में भ्रष्टाचार हो रहा था। बड़े बूढों के समझाने पर भी रामदास चूप नहीं बैठ सकता था। रामदास सोचता था कि चूप बैठने पर यह उन गार्यो के प्रति बड़ी संवेदनशून्यता होगी।

रामदास के प्रबोधन से सरपंच ज्यालाप्रसाद क्रोधित हुआ। सरपंच के कारण किसी जमाने में नेक और ईमानदार रहनेवाले गोबरथन की नियत को बिगाड़ दिया था। प्रारंभ में प्रामाणिकता से रखवालदारी करनेवाले, भगवान से डरनेवाले गोबरधन को एक दिन सरपंच ने लात मारकर नौकरी से निकालने की धमकी दी तो अपने बच्चों के भूखे मरने की कल्पना से वह मजबूरन यह भ्रष्टाचार करने के लिए राजी हो गया।ज्वालाप्रसाद रामदास के गाँव में स्थित प्रचार-प्रसार से बहुत क्रोधित हुआ था। उसने रामदास को बार-बार बुलावा भेजा किंतु रामदास नहीं आया। इससे वह और भी क्रोधित होकर सोचने लगा कि दो कौडी का आदमी होकर भी इतनी घमंड कहाँ से आ गयी? आखिर सरपंच ने खुद रामदास के यहाँ जाकर उसे धमकाया कि रामदास ने सरपंच के खिलाफ गाँववालों को भड़काना बंद नहीं किया तो इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। रामदास ने भी उल्टे जबाब में सरपंच को खरी-खोटी सुनाकर उसकी शिकायत जिला बोर्ड में करने की बात कही। घर लौटते ही ज्वालाप्रसाद रामदास को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा और उसने कल्लू को बुलाया। कल्लू ज्वालाप्रसाद का पाला हुआ गाँव का गुण्डा था। सरपंच के आदेश पर किसी को पीटना, दंगा-फसाद करना, आग लगाना आदि कुकर्म वह करता रहता था। कल्लू के आनेपर ज्वालाप्रसाद ने उसे रामदास को खूब पीटने को और उसकी आवाज को दबाने की बात कही तो सरपंच की आँखों में आँखें डालकर कल्लू ने रामदास का पक्ष लिया।  गोमाता के चारे में भ्रष्टाचार को भी जानता था इसलिए उसे रामदास की कृति यथायोग्य लग रही थी। उसे यह भी पता था कि सरपंच ने गाँव के रास्ते, पुल, कुएँ यहाँ तक की पब्लिक संडास में भी पैसे खाकर भ्रष्टाचार किया था। गाय तो भगवान का रूप थी। उन मूक जानवरों के चारे में किये जानेवाले भ्रष्टाचार को देखकर कल्लू सरपंच पर थूकता है, उसकी निंदा करता है .ज्वालाप्रसाद जब कल्लू को हवालात में बंद करने की धमकी देता है तो उल्टा कल्लू भी सरपंच से सभी पोल खोलने की बात कहकर रामदास को पीटने से इन्कार करता है। इससे ज्वालाप्रसाद बेबस बन जाता है।ज्वालाप्रसाद गाँव में दुकान चलाने के साथ-साथ साहुकारी करता था। चुनाव नजदीक आने पर सरपंच एक ज्योतिषी के कहने के अनुसार एक बैल खरीदता है। बैल को चुना में चिन्ह बनाकर चुनाव जीत जाता है। विरोधी उम्मीदवार को हराकर जीतनेपर सरपंच की पत्नी उस पर व्यंग्य करके निंदा करती है। पत्नी को लगता है कि अब गधे चुनाव हारकर बैल जीतने लगे हैं। कुछ दिनों के बाद सरपंच के ध्यान में यह बात आती है कि उसके द्वारा खरीदा गया वह बैल चारा नहीं खा रहा है तो सरपंच ने ज्योतिषी को बुलाया। ज्योतिषी के मतानुसार वह बैल सामान्य नहीं, खानदानी था। चुनाव जीतने के बाद वह सामान्य चारा नहीं खा सकता था। उसके लिए भ्रष्ट चारा आवश्यक था। अब सरपंच के सामने गोशाला के चारे के सिवा और कोई पर्याय नहीं था। बैल को चोरी का चारा हाथ मारकर खिलाया गया।


कुछ दिनों बाद गोशाला की गाय मर गयी। रामदास को इस घटना का पता चलने पर उसने सभी ग्राम निवासियों को गाय की भूख से मरने की बात को लेकर सचेत किया। गोवरधन और ज्वालाप्रसाद ने गाय की मृत्यू भूख से नहीं बल्कि बीमारी से होने का प्रतिवाद किया। आखिर रामदास ने ज्वालाप्रसाद की शिकायत जिला बोर्ड से की। ज्वालाप्रसाद ने इस शिकायत को साम-दाम-दण्ड-भेद से दबाने का प्रयास किया पर बात जब समाचारपत्रों तक पहुँच गयी तो पूरे मामले की जाँच के आदेश दिये गये। जाँच की जिम्मेदारी गाँव के पटेल को सौंपायी गयी। पटेल ने गोशाला पहुँचकर छानबीन का काम आरंभ किया। ज्वालाप्रसाद पटेल को उल्टे-सीधे जवाब देने लगा तो पटेल ने सीधे ज्वालाप्रसाद के घर जाकर तलाश करने का काम शुरू किया। पटेल को उसके घर से चारे की गंध आने लगी।


पटेल ने बाहर के आंगन की कोठरी खोलने का आदेश दिया तो कोठरी के ताले की चाबी बेटे के पास होने और बेटा शहर चले जाने का कारण ज्वालाप्रसाद आगे करता है। पटेल ताले को तोड़ता है तो उसकी आँखे आश्चर्य से बड़ी हो जाती हैं क्योंकि पूरी कोठरी चारों तरफ से चारे से भरी हुई नजर आती है। इस पर सवाल पूँछते ही ज्वालाप्रसाद जानवर की तरह पटेल पर ऐसे झपटता है जैसे कोई खूँखार पशू अपने शिकार पर टूट पड़ा हो। रामदास सहित सभी ग्रामवासी सरपंच ज्वालाप्रसाद की इस प्रतिक्षिप्त क्रिया को देखते हैं। उनको लगता है कि गोशाला के हराम के चारे ने ज्वालाप्रसाद को साँड़ बना दिया है।इस प्रकार अंत में पता चलता है कि, व्यक्ति का कार्य जिस प्रकार का होता है, उसकी प्रवृत्तियाँ भी उसी कार्य के अनुसार बनती हैं।

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