Print Friendly and PDF e-contents Radhanagari College: भाषाविज्ञान के अध्ययन का महत्त्व

Wednesday, 2 June 2021

भाषाविज्ञान के अध्ययन का महत्त्व

 (Dr. Eknath Patil)

T. Y. B. A. , HINDI  ,Paper No - 16  , Semester -  06   भाषाविज्ञान के अध्ययन का महत्त्व


भाषाविज्ञान के   के अध्ययन से ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ मानव मात्र के ऐक्य की भावना उभर हर एक के हृदय में अपनी भाषा के प्रति सम्मान, प्रेम और गौरव की भावना होती है। कभी-कभी इसी


जाती है।


कारण अन्य या दूसरों की भाषाओं को व्यक्ति हेय समझता है। भाषाविज्ञान के अध्ययन से हमें ज्ञात होता है कि


कोई भी भाषा श्रेष्ठ या हेय नहीं है। भाषा की उत्पत्ति तथा भाषा के विभिन्न परिवारों के अध्ययन से विश्वबन्धुत्व


की भावना वृद्धिंगत होती है । भाषाविज्ञान का सच्चा अध्ययनकर्ता जाति, धर्म, संप्रदाय आदि पूर्व ग्रहों से मुक्त हो जाता है । और उसमें सभी भाषाओं के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना निर्माण हो जाती है। इससे व्यापक और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण के निर्माण में सहायता मिलती है। भाषा मनुष्य की उच्चतम उपलब्धि है। मनुष्य ने किसी भी दिशा में जो कुछ किया है, उसका मूल श्रेय भाषा को ही है। यदि भाषा न होती तो न तो हमारा चिन्तन सम्भव था, न उसका आदान-प्रदान। फिर हम शायद आज भी वहीं होते जहाँ पशु-पक्षी हैं। ऐसी भाषा की उपलब्धि के बारे में मनुष्य में जिज्ञासा का होना स्वाभाविक


2) ज्ञान पिपासा की तृप्ति


है। भाषाविज्ञान भाषा की उत्पत्ति, विकास, भाषा विशेष के उद्भव एवं विकास तथा प्रयोग आदि के बारे में


हमारी जिज्ञासा को शांत करता है।


भाषाविज्ञान के अध्ययन से निष्काम ज्ञानोपासना की प्रवृत्ति जागती है और भाषा के विषय में जिज्ञासा की तृप्ति हो जाती है। भाषा क्या है ? मानव की भाषा पशु-पक्षियों की बोली से किस तरह भिन्न है? भाषा की उत्पत्ति किस प्रकार हुई? हर आठ कोस पर भाषा क्यों बदल जाती है ? ध्वनियों का उच्चारण किस प्रकार होता है? क, ख, ग, घ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने पर भी परस्पर भिन्न क्यों हैं? शब्द और अर्थ का क्या सम्बन्ध है ? अंग्रेज 'तुम' का उच्चारण ‘टुम' क्यों करता है? एक ही वाक्य को पंजाबी, बंगाली और तमिल भाषी लोग भिन्न-भिन्न लहजे में क्यों बोलते हैं? इस प्रकार के सैकड़ों प्रश्नों का उत्तर देकर भाषाविज्ञान हमारी जिज्ञासावृत्ति को सन्तुष्ट करता है।


3)


समाज और संस्कृति का ज्ञान


भाषाविज्ञान के द्वारा हम मानव जाति के अतीत तक पहुँच जाते हैं। समाज के विकास का प्रभाव भाषा के विकास पर भी पड़ता है। अत: भाषा के माध्यम से सामाजिक विकास की प्रक्रिया, समाज की भौतिक सभ्यता और मानसिक विकास का पता चलता वेदों की भाषा आज की भाषा से कैसे भिन्न थी? उस भिन्नता से उस युग के जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है? ये बातें भाषाविज्ञान की सहायता से ही जानी जा सकती हैं। यद्यपि यह कार्य इतिहास का है, किन्तु इतिहास प्रमाण न मिलने के कारण अध्ययन नहीं करता। आर्यों का मूल निवास क्या था? इसका उत्तर इतिहास के पास नहीं है, किन्तु प्राचीनतम् साहित्य की भाषा के आधार पर भाषाविज्ञान इस तथ्य की खोज कर चुका है । भाषाविज्ञान से प्राचीन जातियों की मानसिक अवस्था भी समझती है, जो इतिहास से संभव नहींडॉ. श्यामसुन्दरदास लिखते हैं कि वह (भाषाविज्ञान) उस समय का इतिहास लिखने में सहायक होता है, जिस समय का इतिहास स्वयं इतिहास को भी ज्ञात नहीं है।"


•भाषावैज्ञानिक अध्ययन समकालीन समाज के रीति-रिवाजों को समझने में भी सहायक होता है। वेदों में यज्ञ से सम्बन्धित ऋत्विक, यजमान, समिधा, सामग्री, स्त्रुवा, आचमन, यूप, अर्ध्व, पाद्य आदि सैकड़ों शब्दों का प्रयोग आर्यों की यज्ञ संस्कृति का परिचय देता है। मध्ययुग के युद्ध वाद्यों के नाम, भारतीय वस्त्रों, आभूषणों और खाद्य पदार्थों के नाम, कृषि उपकरण सब समकालीन जीवन-शैली का संकेत देते हैं। साथ ही भाषाविज्ञान के अध्ययन से प्राचीन तथा प्रागैतिहासिक संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है। भाषाविज्ञान के अध्ययन से इस रहस्य का पता चलता है कि मानवी संस्कृति भाषा-संपृक्त है।


4)


भाषा का सम्यक ज्ञान एवं भाषा विषयक समस्याओं का हल -


हम उठते-बैठते, चलते-फिरते भाषा का उपयोग करते हैं। जितना काम हम भाषा से लेते हैं, उतना


काम शरीर के किसी भी अवयव से नहीं लेते। मनुष्य की जिज्ञासा होती है कि वह जिन वस्तुओं से काम लेता है, उनके विषय में जानना चाहता है। भाषा सीखकर ही हम किसी भी विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। अतः भाषा शिक्षण आज के विश्व की अन्यतम् आवश्यकता है। लोग शरीर की चिन्ता चिकित्सक पर छोड़ देते हैं और भाषा की चिन्ता वैयाकरण पर पर जिस वस्तु से हम दिन-रात काम लेते हैं, उसकी थोड़ी-बहुत जानकारी हर एक भाषा शिक्षण, चाहे वह मातृभाषा का हो या अन्य भाषा का उसके लिए भाषाविज्ञान लाभकारी होता है। भाषाविज्ञान हमें भाषा का सर्वांगीण ज्ञान देता है। इससे भाषा के तत्त्वों का ज्ञान होता है, भाषा की शुद्धता, समुचित प्रयोग ध्यान में आते हैं। शुद्ध आचरण, विभिन्न स्तरों की पाठ्यपुस्तकें तैयार करना, वैज्ञानिक ढंग से को होनी चाहिए।


कम समय में किसी भाषा को ठीक तरह से समझना, शब्दकोशों, उच्चारण चार्टों, विदेशी भाषा शिक्षण के लिए


रेकार्डो, टेपों का जो प्रयोग हो रहा है, वह भाषाविज्ञान की ही देन है। भाषाविज्ञान भाषाविषयक प्रश्नों का समाधान करता है। भाषा क्या है ? उसके अंग क्या है? ध्वनियों का उच्चारण कैसे होता है ? ध्वनियों में भेद क्यों होता है? ख से र का उच्चारण क्यों भिन्न है? एक भाषा की ध्वनियाँ दूसरी भाषा से भिन्न क्यों होती हैं? ध्वनि और अर्थ परिवर्तन क्यों होता है? उदा. एक ही मूल से उत्पन्न 'भक्ति भजन और भाग' विभिन्न अर्थों के वाचक कैसे बने? किसी शब्द का अर्थ क्यों बदल जाता है? 'हरि' शब्द के विष्णु, सूर्य, सिंह, घोड़ा, बन्दर, मेंढक आदि अर्थ क्यों हो गए? 'लड़की आता है। यह ग्राहा क्यों नहीं ? 'लड़की आती है। यह क्यों ग्राह्य होता है? 'न' का अर्थ निषेध सभी जानते हैं, पर मैंने कहा था न ?" वाक्य का 'न' निषेध के बदले विधि वाचक हो गया। उसका अर्थ क्यों बदल गया? स्थान भेद से एक भाषा के अनेक रूप क्या हो जाते हैं? उदा. जाता हूँ। जात ही जात हई। हम प्रत्येक भाषा को क्यों नहीं समझते? दो भाषा में कोई अन्तर होता है या नहीं? है तो क्या? संसार की भाषाओं की उत्पत्ति एक सात से हुई या अनेक स्रोतों से इन भाषाविषयक सभी प्रश्नो का समाधान भाषाविज्ञान ही कर सकता है।प्राचीन साहित्य के अर्थ, उच्चारण एवं प्रयोगादि से सम्बन्धित समस्याओं का समाधन भाषाविज्ञान से हो सकता है। प्राचीन काल में मुद्रण के अभाव में साहित्य प्रमाणित रूप में नहीं मिलता। हस्तलिखित प्रतियों में समानता नहीं होती थी। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक साहित्य केवल कण्ठस्थ या मौखिक रूप से संक्रमित होता था। तब पाठ भेद, अर्थ भेद, उच्चारण भेद तथा शब्दों के सही प्रयोग के संबंध में अनेक समस्याएं उत्पन्न होती थी। इन समस्याओं को सुलझाने तथा प्राचीन भाषाओं की कृतियों का अर्थ समझने में भाषाविज्ञान सहायक होता है। मैक्समूलर, रोथ आदि विद्वानों ने वेदों का अनुवाद करने में भाषाविज्ञान का ही सहारा लिया था। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'संदेश रासक' इस अपभ्रंश रचना का अनुवाद भाषावैज्ञानिक अध्ययन के सहारे ही किया है । 5) किसी जाति या संपूर्ण मानवता के मानसिक विकास का प्रत्यक्षीकरण


भाषा में मनुष्य के मन की भावनाओं का प्रतिबिंब होता है। मनुष्य जो देखता है, अपने काल में जो अनुभव करता है, उसी की अभिव्यक्ति भाषा में होती है। मनुष्य की मूल प्रवृत्तियाँ जैसे- हर्ष, क्रोध, वात्सल्य, भय आदि समान होती हैं। मनुष्य संस्कृति तथा सभ्यता के अध्ययन में भाषाविज्ञान का योगदान मौलिक होता है। ध्वनि एवं शब्दों के अनुशीलन, अनुसंधान से तत्कालीन संस्कृति और सभ्यता पर प्रकाश पड़कर नए-नए तथ्य सामने आते हैं। जैसे आर्य, द्रवीड, मिस्त्र तथा सुमेरियन लोकजीवन और उनकी समाजव्यवस का अंतर्बाह्य ज्ञान भाषाविज्ञान के द्वारा ही उपलब्ध हुआ है। संपूर्ण मानवता के मानसिक विकास के आलेख का प्रत्यक्षीकरण भाषाविज्ञान द्वारा संभव होता है। 6)


अन्य ज्ञान-विज्ञानों का सहायक -


भाषाविज्ञान कई विज्ञानों और शास्त्रों से अन्योन्याश्रित है। विशेष रूप से व्याकरण का तो एक प्रकार से पथ-प्रदर्शक ही है। इतिहास, भूगोल, पुरातत्त्व, मनोविज्ञान, समाजविज्ञान, मानवशास्त्र, सूचना प्राद्योगिकी, राजनीति आदि भाषाविज्ञान से अधिक मात्रा में सहाय्य पाते हैं।


इतिहास की तिथियाँ निश्चित करने के लिए भाषाविज्ञान की एक शाखा ऐतिहासिक भाषाविज्ञान उ समय की भाषायी स्थिति से काम लेती है। उस समय की भाषा से आज की भाषा कितनी परिवर्तित हो गई और उसे इस परिवर्तन के लिए कितना समय लगा होगा। इसका अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है।


स्थानीय भौगोलिक परिस्थिति का भाषा पर बहुत प्रभाव पड़ता है। किसी स्थान में बोली जाने वाली भाषा में वहाँ के पेड़-पौधे, जानवर, पक्षी, अन्न आदि के लिए शब्द मिलते हैं। आर्यों का मूल स्थान निश्चित करने


के लिए भौगोलिक उपादानों का आधार लिया था। भूगोल-वेत्ता भाषाविज्ञान की जानकारी से किसी क्षेत्र की स्थिति उदा. मैदानी, पहाड़ी आदि के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाल सकता है।


मिलता है। मनुष्य के भावों और विचारों की वाहिका भाषा तथा भाषाविज्ञान है। पागलों की मनोवैज्ञानिक शिलालेखों, ताम्रपत्रों, पांडुलिपियों का अर्थ समझने के लिए भाषाविज्ञान का योगदान मौलिक रूप में चिकित्सा में, पागल द्वारा कहीं जाने वाली असंबद्ध बातों के अध्ययन विश्लेषण में भाषाविज्ञान से पर्याप्त सहायता मिलती है। भाषाविज्ञान और मनोविज्ञान की परस्पर उपयोगिता के कारण भाषाविज्ञान की नई शाखा 'मनोभाषाविज्ञान' अस्तित्व में आ गई है।भाषाविज्ञान का सबसे बड़ा योगदान समाज विज्ञान को है। भाषाविज्ञान सामाजिक स्थिति, सभ्यता, रीति-रिवाजों आदि पर प्रकाश डालता है। उदा. पतिविहीन स्त्री के लिए 'विधवा' शब्द है । यह स्त्री के जीवन में पति का महत्व और उसे पुनर्विवाह करने का अधिकार न होने का सूचक है। राजनीति में प्रान्तीय भाषा निश्चित करने, राज्य भाषा नीति अपनाने सीमावर्ती क्षेत्रों की भाषा निश्चित करने के लिए भाषावैज्ञानिकों की काफी सहायता हो सकती है। आज के सूचना प्रौद्योगिकी युग में भाषाविज्ञान का एक विस्तृत आयाम ही खुल गया है।


उपर्युक्त ज्ञान-विज्ञानों की सहायता से भाषा विज्ञान भी अपने अध्ययन बना देता है। इस प्रकार भाषाविज्ञान ज्ञान की वृद्धि का माध्यम है।


7)


अन्य विज्ञानों का जनक


को वैज्ञानिक तथा तर्कसम्मत


भाषाविज्ञान के स्वरूप से ही अध्ययन की दो और शाखाएं मत विज्ञान और जनकथा-विज्ञान का जन्म हुआ है। (1) मत विज्ञान विश्व के विभिन्न मतों, धर्मों की तुलना का विज्ञान (2) जन-कथा विज्ञान


लोक,


8)


प्रचलित कथा, दंत कथाओं का अध्ययन | विश्व के लिए एक कृत्रिम भाषा


का विकास करने में सहायक


भाषाविज्ञान पूरे विश्व के वैचारिक आदान-प्रदान के लिए एक ही भाषा का सृजन करने का प्रयास कर रहा है। एस्पेरैता कृत्रिम भाषा इसी प्रयास का फल है। इस भाषा के जनक जमेनहाफ हैं। करीब 50,000 से अधिक पुस्तकें इस भाषा में प्रकाशित हुई हैं। यूरोप के अनेक विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन का प्रबन्ध है। इस भाषा में यूरोप के बाईस रेडियो स्टेशनों पर समाचार प्रसारित होते हैं।


अनुवाद में सहायक


अनुवाद प्रायोगिक भाषाविज्ञान के अन्तर्गत आता है, इसमें भाषाविज्ञान काफी मद्द करता है। अनुवाद


केवल एक भाषा के शब्द के लिए दूसरी भाषा का शब्द रखना नहीं है, तो एक भाषा की वैचारिक निधि को दूसरी भाषा में यथावत् या भावानुबाद रूप से व्यक्त करने का प्रयास है। अनुवाद का कार्य समुचित ढंग से होने के लिए भाषाविज्ञान सहायक होता है । जिस रचना का अनुवाद करना है, उसकी सूक्ष्म विशेषताओं का स्पष्ट ज्ञान भाषाविज्ञान से होने के कारण अनुवाद उच्च कोटि का तथा सटीक होता है। किसी भाषा के लिए लिपि निर्धारण या नई लिपि का निर्माण भाषाविज्ञान की सहायता के बिना असंभव है । आशु-लिपि तो पूर्णतः भाषाविज्ञान की देन है। लिपि शिक्षण में भी भाषाविज्ञान में दिए गए लिपि विश्लेषण


10) लिपि निर्माण तथा सुधार में सहायता -


से सहायता मिलती है। भाषाविज्ञान के अंतर्गत लिपि का एककालिक, तुलनात्मक, पूर्वकालिक, कालक्रमिक अध्ययन किया जाता है। लिपि में सरलता एवं शुद्धता की दृष्टि से परिवर्तन तथा सुधार करने में भाषाविज्ञान से सहयोग मिलता है। 'ब्रेल-लिपि' का अध्ययन विश्लेषण भी भाषाविज्ञान के अंतर्गत ही आता है ।


वाक्-चिकित्सा के लिए आवश्यक -


कुछ लोग तथा बालकों में तुतलाहट, हकलाहट, अशुद्ध उच्चारण,श्रवनदोष होते हैं। परिणामतः उन्हेंअपने भाव व्यक्त करने में बाधा पड़ती है। ऐसे लोगों के तुतलाहट या हकलाहट के कारण ढूँढने में भाषाविज्ञान सहायता पहुंचाता है। इन दोषों का संबंध स्वरयंत्र, स्वर-तंत्री, नासिका विवर, तालु, दाँत, जीभ, होंठ, कंठ आदि से होता है। और इन सब का 'ध्वनि' के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।


ध्वनियों के उच्चारण में क्या भूल हो रही है? उसे कैसे दूर किया जा सकता है ? आदि उच्चारण विषयक दोषों को भाषाविज्ञान के सहारे ही सुलझा सकते हैं । निदान, उपचार तथा चिकित्सा में भाषावैज्ञानिक अध्ययन का लाभ होता है।


12) संचार के साधनों को उन्नत (विकसित) बनाने में सहायक


संचार के साधनों को समुन्नत बनाने में भाषाविज्ञान की सहायता लेनी पड़ती है। उदा.दूर संचार या यान्त्रिक अनुवाद के लिए संकेतों का निर्माण या तत्संबंधी सिद्धान्तों का प्रणयन तभी संभव है, जब भाषिक संकेतों से परिचय हो और भाषिक संकेतों का पूर्ण परिचय भाषाविज्ञान के बिना अकल्पनीय है। टाइपरायटर, शार्टहैण्ड आदि के निर्माण और समुन्नत बनाने के लिए भी भाषाविज्ञान मद्द करता है। भाषाविज्ञान की प्रयोगशाला में बैठकर, टेप द्वारा दुनिया की किसी भी भाषा को सीखा जा सकता है। टेलिफोन द्वारा संवाद भेजने की गति तीव्र करने में प्रयोगात्मक स्रोत ध्वनि-विज्ञान सहायता पहुँचता है।


ध्वनि से संबंध रखने वाले सभी यंत्रों के निर्माण में ध्वनि-विज्ञान का आधार उपयुक्त है। ग्रामोफोन, रेडियो, टेलिफोन, टेलीकम्यूनिकेशन, संगणक आदि का विकास ध्वनि-विज्ञान की सहायता से हो सकता है।


टाईपरायटर में की बोर्ड निर्धारण, उसमें परिवर्तन, प्रेस में टाईप की व्यवस्था आदि में भाषाविज्ञान उपादेय सिद्ध हुआ है। 'फैक्स' का संबंध लिपि विज्ञान से है। ये सारे यंत्र शीघ्र विकास कर रहे हैं और मानव के लिए वरदान साबीत हो रहे हैं।


13) परिभाषिक शब्दावली के निर्माण और भाषा के मानकीकरण में उपयोग पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण में भाषाविज्ञान काफी सहायक होता है। संस्कृत के शब्दों और धातुओं में प्रत्यय जोड़कर सैकड़ों पारिभाषिक शब्द गढ़े गए हैं और आवश्यकता पड़ने पर और हजारो शब्द बनाए जा सकते हैं। अंग्रेजी की शब्दावली ग्रीक और लैटिन भाषाओं के शब्दों से विकसित हुई है। उर्दू में भी अरबी की धातुओं से असंख्य शब्द बनाए गए हैं। भाषा का विकास और अभिव्यंजना में वृद्धि के लिए भाषाविज्ञान का योगदान महत्त्वपूर्ण है। बच्चों तथा


अन्य भाषा-भाषियों के लिए क्रमिक पुस्तकों के निर्माणार्थ भाषाविज्ञान मूलभूत सामग्री देता है। भाषा का परिनिष्ठित


रूप व्याकरण द्वारा नियंत्रित होता है। व्याकरण केवल मानक भाषा को मान्य रूप देकर शांत होता है, तो


भाषाविज्ञान वह रूप क्या है, कहाँ से आया है, कितना प्राचीन है आदि का गहराई में जाकर पता लगाता है। 14) भाषा की शिक्षा, शुद्धता और समुचित प्रयोग में सहायक


सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाता है। विदेशी भाषा की ध्वनियों को आत्मसात करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन मातृभाषा तथा विदेशी भाषाओं के सीखने में पूर्णत:, सरलता और शीघ्रता के लिए भाषाविज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाता है . विदेशी भाषा की ध्वनियों  को आत्मसात करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टी से अध्ययन

 करना पड़ता है।भाषा की शुद्धता और समुचित प्रयोग का ज्ञान तब तक पूर्ण नहीं हो सकता, जब तक भाषा के तत्वों का परिचय न हो और वह भाषाविज्ञान से ही संभव है। भारत में अध्ययन का आरंभ ही ध्वनिविज्ञान से होता था, जिसे प्राचीन काल में 'शिक्षा' कहा जाता था। आज विदेशी भाषा शिक्षा के लिए ध्वनिविज्ञान की सहायता अनिवार्य ली जाती हैं। क्योंकि उसके अभाव में ध्वनि का शुद्ध उच्चारण सम्भव नहीं है।


भाषा के ध्वन्यात्मक स्वरूप को ठीक ढंग से समझने तथा वर्णविन्यास को शुद्ध करने में ध्वनिविज्ञान की सहायता मिलती है। संगीत के आरोह अवरोह, मात्रा जानने में ध्वनिविज्ञान का अध्ययन आवश्यक होता है 1


15) गौण उपयोग -


थिएटर, सिनेमा, नाटक, भाषण में वाचाभिनय सहायता भाषाविज्ञान करता है। यान्त्रिक अनुवाद (कम्यूटराइज्ड ट्रांसलेशन) को अधिक सक्षम और निर्दोष बनाया जा सकता है। व्यावसायिक विज्ञापनों के लिए नारे या घोष वाक्य तैयार करने में दक्षता हासिल की जा सकती है। कोश निर्माण, भ्रांतियों का निवारण, रेडियो पर वार्ता प्रसारण, टी. वी. पर बोलने का ढंग आदि में भाषाविज्ञान सहयोग देता है।


संक्षेप में भाषाविज्ञान का अध्ययन हमारे लिए उतना ही उपयोगी है, जितना किसी भी अन्य शास्त्र का । वह भाषा सम्बन्धी समस्याओं का सही समाधान प्रस्तुत करता है। भाषाविज्ञान के लाभ सभी क्षेत्रों में हैं।

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