Print Friendly and PDF e-contents Radhanagari College: भाषाविज्ञान की परिभाषाएँ

Wednesday, 2 June 2021

भाषाविज्ञान की परिभाषाएँ

 (Dr Eknath Patil)

T. Y. B. A., HINDI, Paper No  - 16  ,                                 भाषाविज्ञान की परिभाषाएँ

भाषाविज्ञान शब्द


‘भाषाविज्ञान’ शब्द ‘भाषा' और 'विज्ञान' इन दो शब्दों के मेल से बना है। 'भाषा' वह साधन है, जिसके माध्यम से हम सोचते हैं तथा विचारों और भावों को व्यक्त करते हैं। 'विज्ञान' का अर्थ होता है - 'विशिष्ट ज्ञान' । किसी वस्तु की साधारण जानकारी को 'ज्ञान' कहते हैं और उसकी पूरी जानकारी हासिल करना 'विशेष ज्ञान' कहलाता है। विज्ञान मनुष्य की व्यवस्थित और विश्लेषणात्मक पद्धति से सोचने की उपलब्धि है। अतः भाषा के सभी अंगों का व्यवस्थित अध्ययन विश्लेषण करके तत्संबंधी नियमों का प्रतिपादन करना ही भाषा का विशिष्ट अध्ययन या भाषाविज्ञान है।Lingua से हुई है, जिसका अर्थ है- जिह्वा, जबान या जीभ । '‘जबान' शब्द का प्रयोग भाषा के अर्थ में भी होता है। अत: भाषाविज्ञान के लिए Linguistics शब्द का प्रयोग उचित ही है। भाषाविज्ञान शब्द पाश्चात्य विद्वानों की देन है। वर्तमान भाषाविज्ञान का आरंभ 1786 ई. में सर विलियम जोन्स के संस्कृत, लैटिन तथा ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन से माना जाता है।


भाषाविज्ञान को सर्वप्रथम कम्पेरेटिव ग्रामर (Comparative Grammar) नाम दिया गया। उसके पश्चात् कम्पेरेटिव फिलालोजी (Comparative philology) नाम रखा गया। आधुनिक समय में भाषाविज्ञान, भाषाशास्त्र, भाषा विचार, भाषा लोचन, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, शब्दशास्त्र, भाषातत्व, भाषिकी आदि शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं। प्रयोगाधिक्य की दृष्टि से आज हिंदी में भाषाविज्ञान, भाषाशास्त्र और भाषिकी ये तीन शब्द ही विशेष मान्य एवं उपयुक्त हैं। लेकिन इनमें भी 'भाषाविज्ञान' नाम ही सर्वाधिक मान्य एवं प्रसिद्ध है। केंद्रीय सरकार (शिक्षा मंत्रालय, दिल्ली) के वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग ने मान्य किया हुआ प्रचलित नाम 'भाषाविज्ञान' हर दृष्टि से भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए उपयुक्त एवं उपादेय है।


"भाषाविज्ञान : पृष्ठभूमि


भाषाविज्ञान एक अर्वाचीन ज्ञानशाखा है। आधुनिक भाषाविज्ञान का जन्म अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। इसके जनक सर विलियम जोन्स माने जाते हैं। वे कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रमुख जज थे। उन्होंने रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्यों के सामने एक निबंध प्रस्तुत किया, जिसमें संस्कृत, ग्रीक और लैटिन भाषाओं में पाए गए साम्य के आधार पर यह मत व्यक्त किया गया था कि 'भारत और योरोप की भाषाएँ एक ही स्रोत से विकसित हुई है।' इससे भारत और योरोप की भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन का मार्ग प्रशस्त हुआ। यहीं भाषाविज्ञान का प्रारंभ बिंदु था ।


प्राचीन काल में पाश्चात्य देशों में भाषाविज्ञान और व्याकरण के क्षेत्र में उतना गहन अध्ययन नहीं हुआ,


जितना भारत में शिक्षा, निरुक्त और निघण्टु के नाम से ध्वनिविज्ञान, व्युत्पत्तिविज्ञान और कोशविज्ञान का जो सूक्ष्म विश्लेषण वैदिक साहित्य में मिलता है, वह सचमुच अद्भुत है। यूनान डायोनिमस थ्रैक्स ने भाषावैज्ञानिक विषयों का गंभीर विवेचन किया है। में सुकरात, प्लेटा, अरस्तू 19 वीं शताब्दी में भाषावैज्ञानिक अध्ययन में गइराई आई। 20 वीं शताब्दी में तो भाषाविज्ञान के ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन पर केंद्रित भाषाविदों का ध्यान हटकर भाषिक अध्ययन के वर्णनात्मक और एककालिक स्वरूप पर केंद्रित हुआ। 1928 ई. में हेग में अन्तर्राष्ट्रीय भाषाविज्ञान परिषद का प्रथम अधिवेशन हुआ। इसके फलस्वरूप विभिन्न देशों में भाषाविज्ञान के चार केंद्र स्थापित हुए, जिन्हें लन्दन स्कूल, अमेरिकन स्कूल, प्राग स्कूल और कोपनहैगन स्कूल के नाम से जाना जाता है। 20 वीं शताब्दी के भाषावैज्ञानिकों ने भाषा के


अध्ययन को सामाजिक संदर्भों के साथ जोड़कर भाषा को देखने की एक नई दृष्टि प्रदान की है। इस प्रकार


पाणिनी, पतंजलि और थ्रैक्स से लेकर सर विलियम जोन्स, ब्लूम फील्ड, चोम्स्की, किशोरीदास


वाजपेयी और भोलानाथ तिवारी तक सैकडों मनीषियों ने इसे अपने ज्ञान और चिंतन से समृद्ध बनाया है।भाषाविज्ञान की परिभाषाएँ - भाषाविज्ञान को परिभाषा में बांधने की कोशिश अनेक भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों की है। अब हम


क्रमश: उनका अध्ययन करेंगे भारतीय विद्वान : परिभाषाएँ।


प्राचीन भारत में संस्कृत साहित्य के अंतर्गत भाषाविज्ञान और व्याकरण के क्षेत्र में काफी गहराई के


अध्ययन हुआ है । संस्कृत साहित्य म भाषाविज्ञान की दो परिभाषाएँ मिलती हैं.


1) "भाषाया यतु विज्ञान, सर्वागि व्याकृतात्मकम्.


विज्ञानदृष्टिमूलं तद् भाषा विज्ञानभुच्यते ।""


अर्थात् भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषा का सर्वागीण विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।


"भाषाया: विज्ञानम् भाषाविज्ञानम् विशिष्ट ज्ञानम् विज्ञानम् ॥'


अर्थात् भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषाविज्ञान कहते हैं।

हिंदी के अनेक विद्वानों ने भाषाविज्ञान की परिभाषा बनाने की कोशिश की है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं


डॉ. मंगलदेव शास्त्री "भाषाविज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं, जिसमें सामान्य रूप से मानवी भाषा


का, किसी विशेष भाषा की रचना और इतिहास का, भाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं के वर्गों की समानताओं


और विषमताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।" डॉ. श्यामसुन्दरदास भाषाविज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं, जिसमें भाषा मात्र के भिन्न-भिन्न अंगों और स्वरूपों का विवेचन और निरूपण किया जाता है।


देवेन्द्रनाथ शर्मा - ‘‘भाषाविज्ञान का सीधा अर्थ है- 'भाषा का विज्ञान और विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान।" इस प्रकार भाषा का विशिष्ट ज्ञान भाषाविज्ञान है। देवीशंकर द्विवेदी - विवेदी जी भाषाविज्ञान को 'भाषिकी' कहते हैं। उनके अनुसार भाषिकी में भाषा का वैज्ञानिक विवेचन किया जाता है।


डॉ. बाबूराम सक्सेना - "भाषाविज्ञान का अभिप्राय भाषा का विश्लेषण करके उसका दिग्दर्शन करना है। " राजेन्द्र द्विवेदी “ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे भाषा के जन्म, गठन, विकास, स्वरूप, अंग, परिवार आदि का विवेचन करने वाले शास्त्र को भाषा विज्ञान कहते हैं. अंबाप्रसाद सुमन "भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषाओं का सामान्य रूप से या किसी एक भाषा का विशिष्ट रूप से प्रकृति, संरचना, इतिहास, तुलना, प्रयोग आदि की दृष्टि से सिद्धांत निश्चित करते हुए वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।"


डॉ. नगेन्द्र - "भाषा या भाषाओं के सर्वपक्षीय एवं सांगोपांग विवेचन का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने वाला विज्ञान भाषाविज्ञान है।" डॉ. उदयनारायण तिवारी - “भाषा शास्त्र का विषय भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करना


हैं। इस अध्ययन की सीमा के अन्तर्गत मानव बट से निःसृत वाणी, प्राचीन तथा अर्वाचीन, संस्कृत एवं असंस्कृत विद्वान एवं निरक्षर सभी के भाषा के रूपों का समावेश करती है।" डॉ. कपिलदेव द्विवेदी “भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषा का सर्वांगीण विवेचनात्मक


अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। "


आचार्य किशोरीदास वाजपेयी "भाषा सम्बन्धी विशेष ज्ञान युक्ति युक्त ढंग से प्राप्त करना 'भाषाविज्ञान है।"


आचार्य सीताराम चतुर्वेदी - "भाषा के वैज्ञानिक तत्त्व को जानने की विद्या भाषाविज्ञान है।"


डॉ. मनमोहन गौतम "भाषा विज्ञान वह शास्त्र है, जिसमें ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा भाषा की उत्पत्ति, बनावट, प्रकृति, विकास तथा न्हास आदि की वैज्ञानिक व्याख्या की जाती


17) डॉ. सरयू प्रसाद अग्रवाल - "भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जो संसार की प्रत्येक भाषा पर लागू होने वाले सिद्धान्तों का निर्धारण करता है।"


पाश्चात्य विद्वान : परिभाषाएँ


1) व्हीटनी (Whitney) ‘भाषा अपनी संपूर्णता में भाषाविज्ञान के अध्ययन का विषय है । इसमें मानवीय


वाणी के सभी संभव रूप आ जाते हैं, चाहे वह मनुष्य के मस्तिष्क या मुख में जीवित हो या दस्तावेजों में सुरक्षित अथवा ताम्रलेखों या शिलालेखों में सुरक्षित हो।'


2) प्रो. रॉबिन्स 'सभी देश कालों की मानव-भाषा के समग्र रूपों एवं प्रयोगों का वैज्ञानिक अध्ययन भाषाविज्ञान कहलाता है।'


3)


ब्लूम फील्ड 'भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जो भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन, सामान्य एवं विशेष रूप से करता है।" (Linguistic is a science which concerns with the scientific study of


language in general as well as in particular.) ब्लूम फील्ड यह भी विचार हैं कि जिसमें लिखित भाषा का अध्ययन किया जाता है, उसे Philology कहते हैं, और जिसमें बोलचाल की भाषा का अध्ययन किया जाता है उसे Linguistic कहते हैं।कार्ल वासलर इन्होंने शब्द और अर्थ तत्त्व पर बल देते हुए भाषाविज्ञान की यह परिभाषा की है. 'Linguistics means profound philosophy of language in general as well as in particular.' आस्कर लुइस चावरिया"The general term linguistics includes in addition to


descriptive linguistics historical and comparative study of language. अर्थात "भाषाविज्ञान में वर्णनात्मक भाषाविज्ञान के अतिरिक्त भाषा के ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन का समावेश होता है।"


हॉकेट - "भाषा के बारे में उपलब्ध व्यवस्थित ज्ञान को भाषाविज्ञान कहते हैं।”


मारियो पेई - ‘‘वह शास्त्र जिसमें भाषा, शब्दों एवं भाषायी नियमों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता


है, भाषाविज्ञान कहलाता है।" Dictionary of Linguistics - ‘भाषाविज्ञान भाषा का विज्ञान है।' (Lingustics : The Science


) of Language)


उपर्युक्त परिभाषाओं का अनुशीलन करने से स्पष्ट होता है।


भाषाविज्ञान की व्याप्ति, संरचना, अध्ययन की दिशा आदि में मतभिन्नता होने के कारण परिभाषाओं में


अंतर दिखाई देता है।


कई परिभाषाएँ भाषा के अध्ययन-विश्लेषण आदि भाषाविषयक सामान्य बातों तक ही सीमित रही हैं।


1)

2) कई परिभाषाओं का दृष्टिकोण वर्णनात्मक होकर उन्होंने भाषा के ऐतिहासिक, तुलनात्मक और सैद्धांतिक


बातों को महत्त्व दिया है। सारांश यह कि भाषाविज्ञान


वह विज्ञान है, जिसमें भाषा विषयक जाता है। भाषाविज्ञान की परिभाषा के बारे में हम कह सकते हैं कि भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जो का वैज्ञानिक रीति से सम्यक अध्ययन करता है।

‘भाषाविज्ञान’ शब्द ‘भाषा' और 'विज्ञान' इन दो शब्दों के मेल से बना है। 'भाषा' वह साधन है, जिसके माध्यम से हम सोचते हैं तथा विचारों और भावों को व्यक्त करते हैं। 'विज्ञान' का अर्थ होता है - 'विशिष्ट ज्ञान' । किसी वस्तु की साधारण जानकारी को 'ज्ञान' कहते हैं और उसकी पूरी जानकारी हासिल करना 'विशेष ज्ञान' कहलाता है। विज्ञान मनुष्य की व्यवस्थित और विश्लेषणात्मक पद्धति से सोचने की उपलब्धि है। अतः भाषा के सभी अंगों का व्यवस्थित अध्ययन विश्लेषण करके तत्संबंधी नियमों का प्रतिपादन करना ही भाषा का विशिष्ट अध्ययन या भाषाविज्ञान है।Lingua से हुई है, जिसका अर्थ है- जिह्वा, जबान या जीभ । '‘जबान' शब्द का प्रयोग भाषा के अर्थ में भी होता है। अत: भाषाविज्ञान के लिए Linguistics शब्द का प्रयोग उचित ही है। भाषाविज्ञान शब्द पाश्चात्य विद्वानों की देन है। वर्तमान भाषाविज्ञान का आरंभ 1786 ई. में सर विलियम जोन्स के संस्कृत, लैटिन तथा ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन से माना जाता है।


भाषाविज्ञान को सर्वप्रथम कम्पेरेटिव ग्रामर (Comparative Grammar) नाम दिया गया। उसके पश्चात् कम्पेरेटिव फिलालोजी (Comparative philology) नाम रखा गया। आधुनिक समय में भाषाविज्ञान, भाषाशास्त्र, भाषा विचार, भाषा लोचन, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, शब्दशास्त्र, भाषातत्व, भाषिकी आदि शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं। प्रयोगाधिक्य की दृष्टि से आज हिंदी में भाषाविज्ञान, भाषाशास्त्र और भाषिकी ये तीन शब्द ही विशेष मान्य एवं उपयुक्त हैं। लेकिन इनमें भी 'भाषाविज्ञान' नाम ही सर्वाधिक मान्य एवं प्रसिद्ध है। केंद्रीय सरकार (शिक्षा मंत्रालय, दिल्ली) के वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग ने मान्य किया हुआ प्रचलित नाम 'भाषाविज्ञान' हर दृष्टि से भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए उपयुक्त एवं उपादेय है।


"भाषाविज्ञान : पृष्ठभूमि


भाषाविज्ञान एक अर्वाचीन ज्ञानशाखा है। आधुनिक भाषाविज्ञान का जन्म अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। इसके जनक सर विलियम जोन्स माने जाते हैं। वे कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रमुख जज थे। उन्होंने रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्यों के सामने एक निबंध प्रस्तुत किया, जिसमें संस्कृत, ग्रीक और लैटिन भाषाओं में पाए गए साम्य के आधार पर यह मत व्यक्त किया गया था कि 'भारत और योरोप की भाषाएँ एक ही स्रोत से विकसित हुई है।' इससे भारत और योरोप की भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन का मार्ग प्रशस्त हुआ। यहीं भाषाविज्ञान का प्रारंभ बिंदु था ।


प्राचीन काल में पाश्चात्य देशों में भाषाविज्ञान और व्याकरण के क्षेत्र में उतना गहन अध्ययन नहीं हुआ,


जितना भारत में शिक्षा, निरुक्त और निघण्टु के नाम से ध्वनिविज्ञान, व्युत्पत्तिविज्ञान और कोशविज्ञान का जो सूक्ष्म विश्लेषण वैदिक साहित्य में मिलता है, वह सचमुच अद्भुत है। यूनान डायोनिमस थ्रैक्स ने भाषावैज्ञानिक विषयों का गंभीर विवेचन किया है। में सुकरात, प्लेटा, अरस्तू 19 वीं शताब्दी में भाषावैज्ञानिक अध्ययन में गइराई आई। 20 वीं शताब्दी में तो भाषाविज्ञान के ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन पर केंद्रित भाषाविदों का ध्यान हटकर भाषिक अध्ययन के वर्णनात्मक और एककालिक स्वरूप पर केंद्रित हुआ। 1928 ई. में हेग में अन्तर्राष्ट्रीय भाषाविज्ञान परिषद का प्रथम अधिवेशन हुआ। इसके फलस्वरूप विभिन्न देशों में भाषाविज्ञान के चार केंद्र स्थापित हुए, जिन्हें लन्दन स्कूल, अमेरिकन स्कूल, प्राग स्कूल और कोपनहैगन स्कूल के नाम से जाना जाता है। 20 वीं शताब्दी के भाषावैज्ञानिकों ने भाषा के


अध्ययन को सामाजिक संदर्भों के साथ जोड़कर भाषा को देखने की एक नई दृष्टि प्रदान की है। इस प्रकार


पाणिनी, पतंजलि और थ्रैक्स से लेकर सर विलियम जोन्स, ब्लूम फील्ड, चोम्स्की, किशोरीदास


वाजपेयी और भोलानाथ तिवारी तक सैकडों मनीषियों ने इसे अपने ज्ञान और चिंतन से समृद्ध बनाया है।भाषाविज्ञान की परिभाषाएँ - भाषाविज्ञान को परिभाषा में बांधने की कोशिश अनेक भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों की है। अब हम


क्रमश: उनका अध्ययन करेंगे भारतीय विद्वान : परिभाषाएँ।


प्राचीन भारत में संस्कृत साहित्य के अंतर्गत भाषाविज्ञान और व्याकरण के क्षेत्र में काफी गहराई के


अध्ययन हुआ है । संस्कृत साहित्य म भाषाविज्ञान की दो परिभाषाएँ मिलती हैं.


1)


"भाषाया यतु विज्ञान, सर्वागि व्याकृतात्मकम्.


विज्ञानदृष्टिमूलं तद् भाषा विज्ञानभुच्यते ।""


अर्थात् भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषा का सर्वागीण विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। "भाषाया: विज्ञानम् भाषाविज्ञानम् विशिष्ट ज्ञानम् विज्ञानम् ॥'


अर्थात् भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषाविज्ञान कहते हैं।


हिंदी के अनेक विद्वानों ने भाषाविज्ञान की परिभाषा बनाने की कोशिश की है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं


डॉ. मंगलदेव शास्त्री "भाषाविज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं, जिसमें सामान्य रूप से मानवी भाषा


का, किसी विशेष भाषा की रचना और इतिहास का, भाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं के वर्गों की समानताओं


और विषमताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।" डॉ. श्यामसुन्दरदास भाषाविज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं, जिसमें भाषा मात्र के भिन्न-भिन्न अंगों और स्वरूपों का विवेचन और निरूपण किया जाता है।


देवेन्द्रनाथ शर्मा - ‘‘भाषाविज्ञान का सीधा अर्थ है- 'भाषा का विज्ञान और विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान।" इस प्रकार भाषा का विशिष्ट ज्ञान भाषाविज्ञान है। देवीशंकर द्विवेदी - विवेदी जी भाषाविज्ञान को 'भाषिकी' कहते हैं। उनके अनुसार भाषिकी में भाषा का वैज्ञानिक विवेचन किया जाता है।


डॉ. बाबूराम सक्सेना - "भाषाविज्ञान का अभिप्राय भाषा का विश्लेषण करके उसका दिग्दर्शन करना है। " राजेन्द्र द्विवेदी “ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे भाषा के जन्म, गठन, विकास, स्वरूप, अंग, परिवार आदि का विवेचन करने वाले शास्त्र को भाषा विज्ञान कहते हैं. अंबाप्रसाद सुमन "भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषाओं का सामान्य रूप से या किसी एक भाषा का विशिष्ट रूप से प्रकृति, संरचना, इतिहास, तुलना, प्रयोग आदि की दृष्टि से सिद्धांत निश्चित करते हुए वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।"


डॉ. नगेन्द्र - "भाषा या भाषाओं के सर्वपक्षीय एवं सांगोपांग विवेचन का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने वाला विज्ञान भाषाविज्ञान है।" डॉ. उदयनारायण तिवारी - “भाषा शास्त्र का विषय भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करना


हैं। इस अध्ययन की सीमा के अन्तर्गत मानव बट से निःसृत वाणी, प्राचीन तथा अर्वाचीन, संस्कृत एवं असंस्कृत विद्वान एवं निरक्षर सभी के भाषा के रूपों का समावेश करती है।" डॉ. कपिलदेव द्विवेदी “भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषा का सर्वांगीण विवेचनात्मक


अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। "


आचार्य किशोरीदास वाजपेयी "भाषा सम्बन्धी विशेष ज्ञान युक्ति युक्त ढंग से प्राप्त करना 'भाषाविज्ञान है।"


आचार्य सीताराम चतुर्वेदी - "भाषा के वैज्ञानिक तत्त्व को जानने की विद्या भाषाविज्ञान है।"


डॉ. मनमोहन गौतम "भाषा विज्ञान वह शास्त्र है, जिसमें ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा भाषा की उत्पत्ति, बनावट, प्रकृति, विकास तथा न्हास आदि की वैज्ञानिक व्याख्या की जाती


17) डॉ. सरयू प्रसाद अग्रवाल - "भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जो संसार की प्रत्येक भाषा पर लागू होने वाले सिद्धान्तों का निर्धारण करता है।"


पाश्चात्य विद्वान : परिभाषाएँ


1) व्हीटनी (Whitney) ‘भाषा अपनी संपूर्णता में भाषाविज्ञान के अध्ययन का विषय है । इसमें मानवीय


वाणी के सभी संभव रूप आ जाते हैं, चाहे वह मनुष्य के मस्तिष्क या मुख में जीवित हो या दस्तावेजों में सुरक्षित अथवा ताम्रलेखों या शिलालेखों में सुरक्षित हो।'


2) प्रो. रॉबिन्स 'सभी देश कालों की मानव-भाषा के समग्र रूपों एवं प्रयोगों का वैज्ञानिक अध्ययन भाषाविज्ञान कहलाता है।'


3) ब्लूम फील्ड 'भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जो भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन, सामान्य एवं विशेष रूप से करता है।" (Linguistic is a science which concerns with the scientific study of language in general as well as in particular.) ब्लूम फील्ड यह भी विचार हैं कि जिसमें लिखित भाषा का अध्ययन किया जाता है, उसे Philology कहते हैं, और जिसमें बोलचाल की भाषा का अध्ययन किया जाता है उसे Linguistic कहते हैं।कार्ल वासलर इन्होंने शब्द और अर्थ तत्त्व पर बल देते हुए भाषाविज्ञान की यह परिभाषा की है. 'Linguistics means profound philosophy of language in general as well as in particular.' आस्कर लुइस चावरिया"The general term linguistics includes in addition to descriptive linguistics historical and comparative study of language. अर्थात "भाषाविज्ञान में वर्णनात्मक भाषाविज्ञान के अतिरिक्त भाषा के ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन का समावेश होता है।"


हॉकेट - "भाषा के बारे में उपलब्ध व्यवस्थित ज्ञान को भाषाविज्ञान कहते हैं।”


मारियो पेई - ‘‘वह शास्त्र जिसमें भाषा, शब्दों एवं भाषायी नियमों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता


है, भाषाविज्ञान कहलाता है।" Dictionary of Linguistics - ‘भाषाविज्ञान भाषा का विज्ञान है।' (Lingustics : The Science


) of Language)


उपर्युक्त परिभाषाओं का अनुशीलन करने से स्पष्ट होता है।


भाषाविज्ञान की व्याप्ति, संरचना, अध्ययन की दिशा आदि में मतभिन्नता होने के कारण परिभाषाओं मेंअंतर दिखाई देता है।

कई परिभाषाएँ भाषा के अध्ययन-विश्लेषण आदि भाषाविषयक सामान्य बातों तक ही सीमित रही हैं।कई परिभाषाओं का दृष्टिकोण वर्णनात्मक होकर उन्होंने भाषा के ऐतिहासिक, तुलनात्मक और सैद्धांतिक 


    बातों को महत्त्व दिया है।             सारांश यह कि भाषाविज्ञान


वह विज्ञान है, जिसमें भाषा विषयक जाता है। भाषाविज्ञान की परिभाषा के बारे में हम कह सकते हैं कि भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जो का वैज्ञानिक रीति से सम्यक अध्ययन करता है।

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