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भाषाविज्ञान / पदक्रम

 (Eknath Patil)

T. Y. B. A. , HINDI  , paper no - 16 , semester - 06  

 भाषाविज्ञान                              पदक्रम


वाक्य भाषा की-सहज इकाई है । वाक्य दो या दो से अधिक अर्थपूर्ण शब्दों के क्रमबद्ध रचना-समूह को




 1)घोड़ा दौड़ता है।


2) मिलिंद किताब पढ़ता है।पहले वाक्य में 'घोड़ा' और 'दौड़ता है' ये दो अर्थ पूर्ण शब्द निश्चित क्रम से आए है। उसी तरह दूसरे वाक्य 'म 'मिलिद', 'किताब' और 'पढ़ता है' ये तीन शब्द निश्चित रूप से क्रमबद्ध तथा अर्थपूर्ण बन गए हैं। इसीलिए


यह वाक्य कहलाया गया है।


शब्द जब वाक्य में आ जाता है, तब पद बनता है। जैसे 'सैनिक', 'घोड़ा' और 'बैठना' ये तीन अलग अलग शब्द हैं; लेकिन इनसे वाक्य बनाने पर वे पद कहलाए जाते हैं सैनिक घोडे पर बैठता है। इसमें 'सैनिक', 'घोड़े पर', 'बैठता है' ये शब्द नहीं रह चुके, तो वे पद बन गए हैं।


उपर्युक्त उदाहरणों को देखकर पता च है कि वाक्य में प्रयुक्त पदों का निश्चित क्रम होता है। इसे ही वाक्य रचना या पदक्रम कहते हैं। प्रत्येक भाषा में बाक्य रचना अलग-अलग ढंग से की जाती है।


उदा.


राम पुस्तक वाचतो


राम पुस्तक ओदुत्ताने


राम पुस्तकं पठति


अथवा


पुस्तकं पठति रामः ।


Ram reads book.


राम किताब पढ़ता है।


(मराठी)


(कन्नड)


(संस्कृत)


(संस्कृत)


(अंग्रेजी)


(हिंदी)


उपर्युक्त वाक्यों में मराठी, कन्नड तथा हिंदी वाक्यों की रचना समान लगती है, तो अंग्रेजी तथा संस्कृत


वाक्यों में अलग-अलग रचना दिखाई देती है।


मराठी में सामान्य तौर पर कर्ता के बाद कर्म और उसके बाद किया ऐसा क्रम वाक्य रचना में रहता है, तो संस्कृत में यह क्रम बदल दिया तो भी चल सकता है। अंग्रेजी में कर्ता के बाद क्रिया और बाद में कर्म आता है। हिंदी की वाक्य रचना निश्चित है। उसमें प्रथम कर्ता, उसके बाद कर्म और उसके बाद क्रिया ऐसा ही


क्रम रहता है।


यह पदक्रम 'व्याकरणीय' अथवा 'साधारण पदक्रम' कहलाया जाता है। बालंकारिक पदक्रम में अथवा बोलचाल की भाषा में पदक्रम अलग रहता है। उनके नियम निर्धारित करना अत्यंत कठिन है। इसलिए यहां केवल साधारण पदक्रम के नियम दिए जाते हैं।पदक्रम के नियम


1) वाक्य में पहले में कर्ता अथवा उद्देश्य, उसके बाद कर्म या पूर्ति और अंत में क्रिया रखी जाती है ।


उदा. 1) प्रिया होशियार जान पड़ती है।2) उर्मिला गाना गाती है।


3) अरुण क्रिकेट खेलता है।


2) यदि किसी वाक्य में दो कर्म हो, तो गौण कर्म पहले और मुख्य कर्म पीछे आता है।


मैंने अपने मित्र को एक किताब भेंट की। स्नेहा ने अपनी सहेली को पत्र भेजा।


3) प्रधान मंत्री ने अपने मित्र को मंत्री बनाया।                                         3) कर्ता तथा कर्मकारकों के सिवा दूसरे कारकों में आने वाले शब्द उनके संबंधित शब्दों के पूर्व आ जाते हैं।


 उदा. 1) मेरे ससूर की तसबीर चित्रकार ने कई दिनों में भी नहीं बनवाई। देखली से देहरादून तक जाने वाली गाड़ी चार नंबर प्लेट फॉर्म पर खड़ी है।


3) सातारा से मेरे गाँव तक जाने वाली सड़क उबड़-खाबड़ हैं।         4) विशेषण जिस संज्ञा से संबंधित रहता है, उसके पहले आ जाता है। उदा. 1) महान शक्तिशाली सॅमसन की ताकद उसके सुंदर सुनहले बालों में थी। 4)


2) विशाल रंगमंच पर एक कमनीय नर्तकी नाच रही थी।


3) अच्छी पुस्तकें सस्ती नहीं मिलती।


5) क्रिया विशेषण अव्यय अथवा क्रिया विशेषण वाक्यांश सामान्यतः क्रिया के पहले आ जाता है।


उदा. 1) हिरन तेजी से चौकड़ी भरता हुआ दौड़ता है। 2) मनुष्य को सुख-दुःख में समान रहना चाहिए। 3) भाई जरा धीरे-धीरे बोलो।          6) संबंधबोधक तथा उसके अनुसंबंधी सर्वनाम के कर्मादि बहुधा वाक्य के आदि में आते हैं।


उदा. 1) उसके पास एक पुस्तक है, जिसमें क्रिकेट के खिलाडियों के चित्र हैं। 2) 3) जिससे लोग घृणा करते हैं, उस पर परमात्मा प्रेम करता है। • जिसका कोई नहीं होता, उसका खुदा होता है।


7) 'क्या' यह प्रश्नवाचक अव्यय कभी वाक्य के आरंभ में आता है, कभी बीच में, तो कभी अंत में भी आता । है। उदा. 1) क्या तुम कल मुम्बई जा रहे हो ?  2) तुम कल क्या मुंबई जा रहे हों?   3) तुम कल, मुंबई जा रहे हो क्या? प्रश्नवाचक अव्यय 'न' वाक्य के अंत में ही आता है


उदा.


1) आप वहां चलेंगे न ?


2)


पिताजी! आप मेरे स्कूल आयेंगे न ?


3) राजपुत्र तो कुशल से हैं न?


8) 'न', 'नहीं' और 'मत' ये निषेधवाचक अव्यय बहुधा क्रिया के पूर्व ही आ जाते हैं। 'नहीं' और 'मत'क्रिया


के पीछे भी आते हैं।


उदा.


1)


मैं न जाऊंगा।


2) राज आज भी नहीं आया।


3)


तुम मत जाओ।


उसने आपको देखा नहीं। 5)


उसे बुलाना मत।


9) संबंधवाचक क्रियाविशेषण जब तब, जैसे-तैसे, जहाँ-तहाँ आदि बहुधा वाक्य के प्रारंभ में ही आ जाते हैं।


उदा.


1) जैसा बोएंगे, वैसा पाएंगे।


2) जहां गुलाब के फूल खिलते हैं, वहाँ कांटे भी दिखाई देते हैं। 3) जब मैं तुम्हें पुकारूंगा, तब तुम तुरंत भाग आना।


Eknath Patil, [08.06.21 21:54]

10)संबंधसूचक अव्यय जिन शब्दों से संबंधित रहते हैं, उनके पीछे आते हैं। पर, मारे, बिना, सिवा कुछ अव्यय उनके पूर्व भी आते हैं।


उदा.


1) वह चिंता के मारे मरा जा रहा है।


2) बेचारा कपड़ों सहित सो गया।


3)


वह बिना सोचे-समझे बोलता है।


4) वह मारे चिंता के सो नहीं पाता।


11)समुच्चयबोधक अव्यय जिन शब्दों को जोड़ते हैं, उनके बीच में आ जाते हैं।


उदा.


1) बच्चों को मां-बाप के प्रति आदर होना चाहिए क्योंकि माँ-बाप ही उनके लिए कष्ट


उठाते हैं।


2) राम-सीता और लक्ष्मण तीनों चौदह साल तक वनवास चले गए।


3)


ग्रह और उपग्रह सूर्य के आसपास घूमते है।


12)संकेतवाचक समुच्चयबोधक अव्यय 'यद्यपि तथापि' और 'यदि-तो' सामान्यतः वाक्य के प्रारंभ में


आ जाते हैं।


उदा.


यदि जाड़ा लगता है, तो कोट पहन कर जाना। 2) पद्यपि वह छोटा है, तो भी बुद्धिमान है।




13)विस्मयादिबोधक अव्यय तथा संबोधनकारक बहुधा वाक्य के प्रारंभ में ही आ जाते हैं। 1) ओह ! उस गरीब की राम कहानी सुनाई भी नहीं जा सकती!


अरे ! यह अचानक क्या हुआ ?


3) छि:! ऐसी गंदी बातें मुँह से निकालते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें ? 4) अरे नटखट ! जरा सुनो तो सही!


14)अधिकरण, अपादान, संप्रदान और करण कारक क्रमशः कर्ता और कर्म के बीच में आते हैं। उदा. 1) राम रथ पर बैठकर नगर से बाहर पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए गए और तीर से रावण को मारा।


15)वाक्य किसी भी अर्थ का क्यों न हो; लेकिन उनके पदों का क्रम हिंदी में प्राय: एक ही सा रहता है। नीचे एक ही वाक्य सभी अयों में दिया है।


1) विधानार्थक वाक्य - राम आम खाता है।


2) निशेधार्थक वाक्य - राम आम नहीं खाता है।


3) प्रश्नार्थक वाक्य - क्या राम आम खाता है ?


4) आज्ञार्थक वाक्य - राम, आम खाओ।


5) इच्छार्थक वाक्य - राम, आम खाये।


6) विस्मयादिबोधक वाक्य -अरे! राम आम खाता है !


7) संदेहार्थक वाक्य - राम ने आम खाया होगा।


8) संकेतार्थक वाक्य -राम आम खाता, तो अच्छा होता ।


(सूचना - बोलचाल की भाषा में पदक्रम के बारे में कुछ निश्तिच नियम नहीं बताएँ जा सकते। संभाषण में


पदक्रम के संबंध में पूर्ण रूप से स्वतंत्रता रहती है।


उदा.






1) बड़ी उमर है तुम्हारी, भाई।


2) करती हूँ कोशिश में, लेकिन बुरा मत कहना तुम मुझे ।

3)


बताते हैं, अभी हम तुमको |


4) बज गए न आऊ, फिर भी उठे नहीं तुम !


आलंकारिक भाषा में भी पदक्रम की स्वतंत्रता रहती है। लेखक अथवा कवि की इच्छा के अनुसार पदक्रम में अंतर पड़ जाता है।)

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