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भाषाविज्ञान के प्रधान अंग

 (Eknath Patil)

T. Y. B. A. , HINDI  ,  paper no - 16  ,semester - 06 

भाषाविज्ञान के प्रधान अंग


भाषाविज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है। अत: उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। 'भाषा' शब्द के द्वारा उसके मुख्य चार घटकों का बोध होता है। ये चार घटक ही भाषाविज्ञान के प्रधान अंग हैं।


1) safa fasta (Phonetics)


3) वाक्य विज्ञान (Syntax)


2 ) पदविज्ञान / रूप विज्ञान (Morphology )


4) अर्थविज्ञान (Semantics)


इसके अतिरिक्त डॉ. भोलानाथ तिवारी ने भाषाविज्ञान के और दो अंग बताए हैं


1) शब्द विज्ञान (Wordalogy) 2) प्रोक्ति विज्ञान (Discoursology)


भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। ध्वनि का ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों के समुदाय से शब्द बनता है । अनेक पदों की रचना से वाक्य बनता है और वाक्य से पूरे अर्थ की प्रतीति होती हैं। इनमें से प्रत्येक अंग का भाषाविज्ञान के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।1.ध्वनि विज्ञान  

(Phonetics) -


ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत ध्वनियों का विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन किया जाता है। भाषा के अंदर ध्वनि का बहुत महत्त्व है । वस्तुत: ध्वनि भाषा की लघुत्तम इकाई है, जिसका पुनः विभाजन नहीं किया जा सकता। मानव ध्वनि को 'स्वन' भी कहते हैं। ध्वनि -समूह से ही भाषा का निर्माण होता है। ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत उन्हीं ध्वनियों का अध्ययन होता है, जिनके संयोग से भाषा का निर्माण होता है।

ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत ध्वनियों का विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन किया जाता है। भाषा के अंदर ध्वनि का बहुत महत्त्व है । वस्तुत: ध्वनि भाषा की लघुत्तम इकाई है, जिसका पुनः विभाजन नहीं किया जा सकता। मानव ध्वनि को 'स्वन' भी कहते हैं। ध्वनि -समूह से ही भाषा का निर्माण होता है। ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत उन्हीं ध्वनियों का अध्ययन होता है, जिनके संयोग से भाषा का निर्माण होता है।) .ध्वनियों के साथ-साथ इनके उच्चारण स्थान का भी अध्ययन ध्वनि-विज्ञान के अंतर्गत होता है। ध्वनियों का उच्चारण जिन अंगों से होता है, उन्हें समग्र रूप से 'वाग्यंत्र' कहते हैं। ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत इस बा की रचना, इसके विभिन्न अंगों के कार्य आदि का अध्ययन किया जाता है। वाग्यंत्र के कई अंग होते हैं, जिनसे विभिन्न ध्वनियों का उच्चारण होता है। जैसे- ओष्ठ्य अंग से 'प' वर्ग की ध्वनियों का, कण्ठ अंग से 'क' बुर्ग की ध्वनियों का उच्चारण होता है।


ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत ध्वनियों में जो विभिन्न प्रकार के परिवर्तन होते हैं, उनके कारणों और दिशाओं का भी अध्ययन किया जाता है। इन कारणों और दिशाओं के अध्ययन का आधार वैज्ञानिक होता है। अर्थात् सम्यक रूप से यह अनुशीलन होता है कि, ध्वनि परिवर्तन के इन कारणों और दिशाओं का आधार क्या है? इन परिवर्तनों का रूप क्या होता है?


ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत ध्वनि संबंधी एक और महत्वपूर्ण विषय का अध्ययन होता है, जिसका नाम


'ध्वनि नियम' है। ये ध्वनि नियम विभिन्न प्रकार के ध्वनि परिवर्तनों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। इसके


अंतर्गत इस बात का अध्ययन होता है, कि इन नियमों का संबंध किस भाषा से है ? किस काल विशेष से है और


इनका कार्य किन सीमाओं के अंदर रहकर संपादित होता है? उदाहरण के लिए ग्रिम नियम को लिया जा सकता है।


इस तरह ध्वनि विज्ञान का समकालिक, ऐतिहासिक, तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन होता है।


ध्वनि अध्ययन के तीन प्रमुख आधार हैं- उच्चारण, प्रसरण या संवहन तथा श्रवण। इसी आधार पर ध्वनि विज्ञान की मुख्यतः तीन शाखाएँ मानी जाती हैं- (1) औच्चरणिक ध्वनि विज्ञान - इस शाखा में उच्चारण और उससे सम्बद्ध बातों का अध्ययन होता है। (2) सांवहनिक या प्रासरणिक ध्वनि विज्ञान इस ध्वनि विज्ञान की शाखा में उच्चारण के फलस्वरूप बनने वाली ध्वनि-लहरों का अध्ययन होता है। इस अध्ययन में प्रायः कायमोग्राफ, स्पेक्टोग्राफ, अॅसिलोग्राफ आदि यंत्रों का प्रयोग होता है। (3) श्रावणिक ध्वनि विज्ञान इस शाखा में ध्वनियों की श्रवण प्रक्रिया का अध्ययन होता है। इस प्रकार उच्चारण, संवहन और श्रवण तक का अध्ययन ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत आता है।

2)   पद विज्ञान या रूप विज्ञान

इसे 'रूप विचार' या 'पद रचना शास्त्र' भी कहते हैं। 'ध्वनि' भाषा की लघुत्तम इकाई है। ध्वनियों के समूह से शब्द का निर्माण होता है तथा शब्दों के समूह से वाक्य का, और सार्थक वाक्यों के समुच्चय से भाषा का निर्माण होता है। परंतु शब्द तथा वाक्य के मध्य रचना प्रक्रिया की दृष्टि से एक और सीढ़ी है, जिसका नाम 'पद' है। ‘पद' शब्द का सीधा अर्थ है पैर। पैर का काम है चलना। एक प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि जब मूल शब्द वाक्य में चलने लगता है, अर्थात एक निश्चित अर्थ देने लगता है, तब वह पद बन जाता है। इस प्रकार वाक्य केवल होना चाहिए। इसके लिए शब्दों में प्रत्यय, विभक्तियाँ आदि जोड़ते हैं। जब मूल शब्द में प्रत्यय, विभक्ति आदि के शब्दों का समूह मात्र ही नहीं होता; अपितु उन शब्दों में एक निश्चित अर्थ बोध के लिए, परस्पर संबंध भी स्थापित


योग से विकार उत्पन्न हो जाता है, तब उसे पद कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'राम', 'रावण', 'बाण', 'मारा' इन चार शब्दों को ले सकते हैं। इन शब्दों का अपना एक निश्चित अर्थ है, जो मूलार्थ है । यदि परिवर्तन किए बिनाही हम इन शब्दों से वाक्य बनाना चाहे तो असफल रहेंगे। इनके पारस्परिक संबंध को दर्शन के लिए इन शब्दों में परिवर्तन कर हम एक पूर्ण वाक्य बना सकते हैं; जैसे, राम ने रावण को बाण से मारा। इससे वाक्य में प्रयुक्त शब्दों का पारस्परिक संबंध स्पष्ट होता है। इस वाक्य में राम, रावण, बाण, मारा जैसे शब्द 'अर्थतत्त्व कहलात हैं, तथा ने, को, से जैसे विभक्ति चिह्न तथा 'आ' जैसे प्रत्यय 'संबंध तत्त्व' कहलाते हैं। इस प्रकार अर्थतत्त्व तथा संबंध तत्त्व के योग से बना शब्द 'पद' कहलाता है। भाषा विज्ञान की इस इकाई के अंतर्गत भाषा के वैयाकरणिक रूपों के विकास, कारण तथा धातु, उपसर्ग, प्रत्यय, विभक्ति आदि का अध्ययन किया जाता है। लिंग, वचन, काल आदि से संबंधित परिवर्तनों का अध्ययन भी इसी के अंतर्गत होता है। रूप निर्माण प्रक्रिया भी इसके अंतर्गत आती है। रूप परिवर्तनमूलक तथा व्युत्पत्तिमूलक परिवर्तनों का अध्ययन भी इसी के अंतर्गत होता है। यह अध्ययन समकालिक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक तीनों ही प्रकार का हो सकता है। 

 3) वाक्य विज्ञान ( Syntax)भाषा का कार्य विचार-विनिमय है, जिसका माध्यम वाक्य है। भाषा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग वाक्य ही है। भाषाविज्ञान में वाक्य के अध्ययन के विभाग को 'वाक्य-विज्ञान' या 'वाक्य-विचार' कहा जाता है। इस विभाग के अंतर्गत वाक्य की संरचना, उसके आवश्यक उपकरण आदि का मनोवैज्ञानिक और सूक्ष्म अध्ययन होता. है। यह अध्ययन करते समय भाषा में वाक्य प्रयोग की स्थिति और उसके अर्थ पर भी विचार किया जाता है।


वस्तुत: विविध पदों से वाक्य का निर्माण होता है। वाक्य विज्ञान के अंतर्गत वाक्य का पद विन्यास संबंधी अध्ययन एवं विवेचन होता है। वाक्य सार्थक होता है और सार्थक वाक्यों से भाषा की रचना होती है। इस प्रकार किसी भी वाक्य के अंदर दो मुख्य बातें निहित होती है, जिन्हें उद्देश्य और विधेय के रूप में जाना जाता है। वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं और उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे ‘विधेय’ कहते हैं। जैसे - ‘राम पुस्तक पढ़ता है।' इस वाक्य में 'राम' उद्देश्य है, और 'पुस्तक पढ़ता है' यह विधेय है । इन दोनों का सम्यक् अध्ययन वाक्य विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है, जिससे वाक्य की संरचना और उसके अर्थ विशेष को समझने में सरलता रहती है।


वाक्य विज्ञान के अंतर्गत वाक्य के प्रकारों का भी अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन का आधार वैज्ञानिक होने के कारण यह पूर्ण और सुस्पष्ट होता है। वाक्य विज्ञान के अंतर्गत वाक्य की रचना, पदों का महत्व, पदान्वय, वाक्य के भेद, परिवर्तन के कारण और दिशाएँ, केंद्रिकता आदि का सम्यक्, सूक्ष्म और पूर्ण अध्ययन एव विवेचन होता हैं। इसके तीन रूप हैं- (i) समकालिक, (ii) ऐतिहासिक (ii) तुलनात्मक ।


4) अर्थ विज्ञान (Semantics)

अर्थ भाषा का आंतरिक पक्ष है, जिसे 'आत्मा' की संज्ञा दी जाती है। भाषा सार्थक व्यवस्था होने के कारण उसकी प्रयोजनीयता अर्थ के द्वारा ही संभव है। कुछ विदेशी विद्वान, जिनमें अमेरिकी अग्रगण्य हैं, अर्थ को भाषाविज्ञान का विषय न मानकर दर्शन अथवा मनोविज्ञान का विषय मानते हैं। लेकिन ऐसा मानने का तात्पर्य ध्वनियों को निरर्थक मान लेना होगा। किंतु ऐसा मान लेना भी सार्थक नहीं है; क्योंकि संप्रेषणीयता भाषा कीसर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। दूसरे, ध्वनि, वाक्य, रूप और शब्द भाषा के शरीर मात्र का कार्य करते हैं। उसकी आत्मा तो 'अर्थ' ही हैं, जिसके अध्ययन के बिना भाषा का अध्ययन अधूरा-सा ही रह जाएगा। साथ ही रही है। इससे समाज मनोविज्ञान के साथ अर्थ और उसके विकास के कारण आदि जुड़े हैं। शब्दों के अर्थ और उसके परिवर्तन के कारण, अर्थ परिवर्तन की दिशाएँ, अर्थ और ध्वनि का संबंध, पर्याय, विलोमता आदि का समकालिक, तुलनात्मक, ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन किया जा सकता है। इसके अन्य नाम 'अर्थ-विचार' और 'अर्थ 'उद्बोधशास्त्र' भी हैं।


5) शब्द विज्ञान (Wordalogy)

यह विभाग परंपरा से हटकर डॉ. भोलानाथ तिवारी ने ही किया है। देश-विदेश के अन्य विद्वानों ने रचना के अंतर्गत ही शब्दों पर विचार किया है; किंतु शब्दों का वर्गीकरण किसी भाषा के शब्द समूह में परिवर्तन के कारण एवं दिशाएँ, शब्द समूह, कोश विज्ञान और व्युत्पत्तिशास्त्र इसी विभाग के अंग हैं। व्युत्पत्तियों के अध्ययन के समय शब्दों का तुलनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन भी किया जाता है।


6) प्रोक्ति विज्ञान (Discoursology)

किसी बात को कहने के लिए प्रयुक्त वाक्यों के समुच्चय को 'प्रोक्ति' कहते हैं, जिसमें एकाधिक वाक्य आपस में सुसंबद्ध होकर अर्थ और संरचना की दृष्टि से इकाई बन गए हों। अंग्रेजी शब्द 'डिस्कोर्स' के लिए प्रतिशब्द के रूप में हिंदी में 'प्रोक्ति' शब्द का प्रयोग हो रहा है। प्रोक्ति के अध्ययन के लिए भोलानाथ तिवारी जी ने हिंदी में 'प्रोक्तिविज्ञान' और अंग्रेजी में 'डिस्कोर्सालोजी' नाम दिया है। भारतीय काव्यशास्त्री प्रोक्ति के लिए 'महावाक्य' का प्रयोग प्राचीन काल में करते थे। आधुनिक युग में समाज भाषा विज्ञान के विकास के कारण प्रोक्ति की ओर लोगों का ध्यान अब गया है।


अर्थ और संरचना आदि सभी दृष्टियों से विचार करने पर प्रोक्ति ही भाषा की मूलभूत सहज इकाई ठहरती है, यह तिवारी जी का मत है। क्योंकि समाज में विचार विनिमय के लिए प्रोक्ति का प्रयोग किया जाता है । प्रोक्ति का विश्लेषण करने पर वाक्य मिलते हैं। उदाहरण के लिए, “लंका के अत्याचारी राजा रावण अयोध्या के राजकुमार राम की पत्नी सीता को उठाकर अपने रथ पर बिठाकर ले गया। पता चलने पर राम और उनकी सेना ने उस पर चढ़ाई की । युद्ध में रावण पक्ष के काफी लोग मारे गए। अंत में वही हुआ, जो होना था। राम ने रावण को बाण से मारा और रावण वीरगति को प्राप्त हुआ।" यह एक प्रोक्ति है, जिसमें कई वाक्य हैं; जैसे - युद्ध में रावण पक्ष के काफी लोग मारे गए या राम ने रावण को बाण से मारा आदि। ये सभी वाक्य आपस में सुसम्बद्ध हैं।


'प्रोक्तिविज्ञान' भाषाविज्ञान की वह शाखा है, जिसमें प्रोक्ति का अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है। यह अध्ययन भी समकालिक, ऐतिहासिक, तुलनात्मक, सैद्धांतिक रूप में हो सकता है।

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